भजन द्वारा भगवान् की प्राप्ति का है साधन: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सबसे पहली और सबसे आखरी बात तो एक ही है कि एक भी क्षण हमारे जीवन का प्रभु की पवित्र तथा मधुर-मधुर स्मृति से रहित नहीं बीतना चाहिए। भगवान् की यह वाणी याद रहे सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर। आकस्मिक एवं वास्तविक असली फल वह है, जो अन्तिम परिणाम के रूप में प्राप्त होता है। चापलूसी या पाप करने वाला मनुष्य यदि एक बार बढ़ते हुये दीखता है तो इसका मतलब यह नहीं कि यही अंतिम परिणाम है। घर में आग लगने पर भी एक बार रोशनी दीख सकती है, पर घर खाक हो जाता है। असल में सत्य और पुण्य कर्म का फल ही वास्तविक शान्तिदायक और सुखदायक हो सकता है। इस पर विश्वास करके शुद्ध आचरण में लगे रहना चाहिये। किसी आकस्मिक उन्नति में लुभाकर पाप में प्रवृत्ति उचित नहीं। मानव-जीवन क्षण-भंगुर है, ऐसा मानकर मनुष्य निरपेक्षता धारण करे, नम्र बने। मानव-जीवन का लक्ष्य केवल संसार के सुख नहीं, तप करना है। मानव शरीर पाकर भी जो मनुष्य केवल संसार के सुखों के पीछे लगा रहता है, वह मनुष्य अमृत देकर बदले में विष लेता है। मानव-शरीर व्यर्थ समय वीताने के लिए नहीं मिला है। यह तो भजन द्वारा भगवान् की प्राप्ति का साधन है। मानव-शरीर समस्त शुभ साधनों का धाम है। इसे नष्ट मत करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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