जीवन को नियोजित करने की शिक्षा देती है श्रीमद्भगवद्गीता: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता जीवन को नियोजित करने की शिक्षा देती है।स्थायी एवं अस्थायी की सही पहचान न कर पाना ही दुःख का कारण बनता है। व्यक्ति भ्रमवश अस्थायी को स्थायी मान लेता है, और स्थायी को अस्थायी मान लेता है। जीवन को कैसे सही ढंग से नियोजित किया जाय, इस बात की शिक्षा श्रीमद्भगवत् गीता से मिलती है।शरीर और आत्मा को न समझ पाने वाला समस्या में पड़ता है। अर्जुन यह अंतर नहीं समझ पाने के कारण कौरवों से लड़ने को तैयार नहीं था। भगवान कृष्ण ने उसे समझाया कि जिन्हें वह स्वजन समझता है, वे आततायी है, आग लगाने वाला, विष देने वाला, खराब भावना से हाथ में शस्त्र लेकर निकलने वाला, धन का हरण करने वाला, जमीन का हरण करने वाला और स्त्री का हरण करने वाला। यह छः कार्य करने वाले को आततायी की श्रेणी में माना गया है, वह चाहे कोई भी क्यों ना हो शासक को चाहिये उन्हें मृत्युदंड की सजा दे दे, उन्हें मृत्यु दण्ड ही उसका धर्म है। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्मा अमर है। जो व्यक्ति इस तत्व को जानता है, वह किसी से भयभीत नहीं होता। भगवान ने स्वयं अर्जुन को गीता की शिक्षा दी। गीता के शब्द भगवान् के मुख से निकले हुए शब्द हैं। गीता का अध्ययन व्यक्ति के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के साथ उसे चिन्तामुक्त, तनावरहित कर मुक्ति की ओर ले जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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