नई दिल्ली। तालिबान के साथ हुई पहली आधिकारिक बातचीत के बाद भी भारत अफगानिस्तान में नई सरकार को मान्यता देने के मामले को लेकर बेहद सतर्क है। भारत बेहद सोच समझकर और जल्द गठित होने वाली नई तालिबान सरकार की नीतियों को भांप कर ही इस मामले में अपने पत्ते खोलेगा। फिलहाल उसने अमेरिका की तरह दोहा से ही अफगान मामले को देखने की रणनीति बनाई है। सरकारी सूत्रों ने माना, तालिबान के साथ आधिकारिक बातचीत में रूस की भी भूमिका थी। हालांकि उक्त सरकारी सूत्र ने कहा कि अफगानिस्तान में बदली परिस्थितियों के बीच भारत सीधे तालिबान नेतृत्व के तो नहीं मगर उससे जुड़े कई गुटों के संपर्क में था। तालिबान को मान्यता देने से पहले भारत नई सरकार की भावी नीतियों और अपने हितों से जुड़े मुद्दों पर उसके रुख को भांपना चाहता है। तालिबान के आने के बाद भारत ने भले ही अपना दूतावास बंद कर दिया है, मगर अभी तक अफगानिस्तान से राजनयिक संबंध नहीं तोड़े हैं। दरअसल बीते दो दशकों में विकास और जनहित के कामों के कारण भारत ने अफगानिस्तान में अपनी अच्छी छवि बनाई है। वहां भारत ने अरबों डॉलर का निवेश भी किया है।