हैदराबाद। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण ने स्वामी विवेकानंद के 128 साल पहले शिकागो में दिए एतिहासिक भाषण को याद किया। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति की वकालत की थी। अपने संबोधन में उन्होंने समाज में निरर्थक सांप्रदायिक मतभेदों से देश व सभ्यता को होने वाले खतरे का विश्लेषण किया था। सीजेआई रमण यहां विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन एक्सीलेंस के 22वें स्थापना दिवस समारोह को वर्चुअल तरीके से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस दौरान स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए ऐतिहासिक भाषण को याद किया। उन्होंने कहा कि भारत के समतावादी संविधान के निर्माण का कारण बने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए सांप्रदायिक संघर्ष से बहुत पहले स्वामी विवेकानंद ने धर्मनिरपेक्षता की ऐसे वकालत की थी। मानो उन्हें आने वाले समय का आभास था। उनका दृढ़ विश्वास था कि धर्म का असली सार भलाई और सहिष्णुता में है। धर्म को अंधविश्वास और कट्टरता से ऊपर होना चाहिए। सामान्य भलाई और सहिष्णुता के सिद्धांतों के माध्यम से दोबारा उठ खड़े होने वाले भारत के निर्माण का सपना पूरा करना है तो हमें आज के युवाओं के अंदर स्वामी जी के आदर्शों को स्थापित करने का काम करना चाहिए।