उत्तराखंड। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कालिका स्थित वन अनुसंधान केंद्र में देश की पहली प्राकृतिक फर्नरी (फर्नेटम) खुल गई है। पिछले डेढ़ दो सालों से कैंपा (वनारोपण निधि प्रबंधन व योजना प्राधिकरण) योजना के तहत इसे विकसित करने की कवायद चल रही थी। मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस फर्नरी में 120 प्रकार के फर्न हैं। यहां कई फर्न डायनासोर के जमाने से ताल्लुक रखते हैं, जिन्हें ट्री फर्न कहा जाता है। वन अनुसंधान केंद्र में जाने-माने फर्न डॉ. एन पुनेठा की देखरेख में प्राकृतिक फर्नरी विकसित हुई है। उत्तराखंड वन अनुसंधान के सलाहकार जोगेंद्र बिष्ट, वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी और डा. एन पुनेठा ने संयुक्त रूप से फर्नरी का उद्घाटन किया। डॉ. पुनेठा ने बताया कि यह फर्न कम उजाले में भी विकसित हो सकता है। सबसे पहले केरल में फर्नरी बनी थी। वहां फर्न की 70 प्रजातियां हैं जो प्राकृतिक नहीं हैं। रानीखेत अनुसंधान केंद्र में एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से फर्न उत्पादित होगा। केंद्र के सलाहकार जोगेंद्र बिष्ट ने वन अनुसंधान के प्रयासों की सराहना की। कहा कि फर्न को संरक्षित करने का यह प्रयास अनूठा है। यहां वन अनुसंधान केंद्र के तमाम अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे। फर्न दवाइयां बनाने, सौंदर्य प्रसाधनों में इस्तेमाल, सजावटी सामान और भोजन तथा चारे के लिए काम आता है। वन विभाग पारिस्थितिकी तंत्र को और विकसित करने के प्रयासों में जुटा है। कालिका स्थित वन अनुसंधान केंद्र का फर्नरी फर्नेटम भी इसी दिशा में उठाया गया अनूठा कदम है। केरल स्थित फर्नरी कृत्रिम है, जबकि रानीखेत स्थित फर्नेटम प्राकृतिक होगी। वन अनुसंधान के सलाहकार जोगेंद्र बिष्ट ने बताया कि फर्न दूसरी प्रजातियों के लिए जमीन तैयार करते हैं और यह कम उजाले में भी उत्पादित हो जाते हैं। विलुप्त होते फर्न को फिर से उत्पादित करने की तकनीक सराहनीय है। फर्न विशेषज्ञ डा. एन पुनेठा के प्रयास भी सराहनीय हैं। रानीखेत के जंगलों में शीघ्र उच्च हिमालयी औषधि पौध क्षेत्र की स्थापना होगी। इसके लिए वन अनुसंधान केंद्र ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। औषधि प्रजाति की 32 प्रजातियों का यहां उत्पादन होगा। इनमें पाषाणवेद, शतुवा, जटामासी, किल्मोड़ा आदि प्रजातियां प्रमुख होंगी।