वास्तु। नवरात्रि में कन्या पूजन करना बहुत शुभ माना गया है। विशेष रूप से देवी उपासना के इन पावन दिनों में किसी भी दिन कन्या पूजन कर पुण्य प्राप्त किया जा सकता है, परंतु अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करना और भी फलदाई माना गया है। इस बार अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर और नवमी तिथि 14 अक्टूबर की पड़ रही है। क्यों जरूरी है कन्या पूजन:- कन्या, सृष्टि सृजन श्रृंखला का अंकुर होती है। यह पृथ्वी पर प्रकृति स्वरुप माँ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा ,व्यवस्थापक रूपी नौ ग्रह, त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाकर चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए हम उपवास, पूजा, अनुष्ठान आदि करते है जिससे जीवन में भय ,विघ्न और शत्रुओं का नाश होकर सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि हवन, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं जितनी कन्या पूजन से प्रसन्न होती हैं। श्रद्धा भाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की से चारों पुरुषार्थ और राज्य सम्मान, चार और पांच की पूजा से बुद्धि-विद्या, छह की पूजा से कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद,आठ की पूजा से अष्टलक्ष्मी और नौ कन्याओं की पूजा से सभी प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। किस रूप की पूजा से क्या मिलता है फल:- दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि दुर्गा पूजन से पहले भी कन्या का पूजन करें, तत्पश्चात ही माँ दुर्गा का पूजन आरम्भ करें। नवरात्रि के नौ दिनों में कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कन्याओं की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से अधिक न हो। दो वर्ष की कन्या अर्थात कुमारी रूप के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है। भगवती त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है। देवी कल्याणी के पूजन से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है। माँ के कलिका स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या माँ चण्डिका का रूप है। इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और सभी तरह के ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है। माँ शाम्भवी की पूजा करने से युद्ध, न्यायलय में विजय और यश की प्राप्ति होती है। नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा का स्वरूप मानते है। मां के इस स्वरूप की अर्चना करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती है, शत्रुओं का नाश होता है और कठिन से कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त होती है। देवी सुभद्रा स्वरूप की आराधना करने से सभी मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है।