एम्स ऋषिकेश में शुरू हुई टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक
उत्तराखंड। एम्स ऋषिकेश में अब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन सेंटर (आईवीएफ) सुविधा शुरू कर दी गई है। स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में इस नई उपलब्धि के शुरू होने से उन परिवारों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा। जिन दंपतियों के शारीरिक कमी की वजह से बच्चे नहीं हो पाते हैं। इस सुविधा के शुरू होने से अब बांझपन का दंश झेल रहे लोगों की समस्या का समाधान हो सकेगा। इसके साथ ही उत्तराखंड में एम्स ऋषिकेश पहला सरकारी स्वास्थ्य संस्थान बन गया है। जहां यह सुविधा शुरू की गई है। एम्स ऋषिकेश के प्रभारी निदेशक और सीईओ प्रो. अरविंद रघुवंशी ने संस्थान के गायनी विभाग में आईवीएफ सेंटर सेंटर का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि जो महिलाएं बांझपन की समस्या से ग्रसित हैं। उन्हें सामाजिक कलंक, वर्जना और मानसिक प्रभावों का भी सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एम्स में आईवीएफ केंद्र खुलने से उत्तराखंड और आस पास के शहरों में रहने वाले ऐसे सभी लोगों को लाभ मिल सकेगा जो संतान सुख से वंचित हैं। प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की प्रमुख तथा एम्स के आईवीएफ केंद्र की प्रभारी प्रो. जया चतुर्वेदी ने बताया कि गायनी विभाग बीते चार वर्षों से बांझपन वाले जोड़ों का प्रबंधन कर रहा है। इसमें बांझ दंपती का काम, ओव्यूलेशन इंडक्शन, फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग, बांझपन के लिए लेप्रोस्कोपिक और हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि यह विभाग इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइन के अनुसार 45 वर्ष तक की महिलाओं और 50 वर्ष तक के पुरुषों के लिए यह सुविधा प्रदान करेगा। आईवीएफ केंद्र की नोडल अधिकारी डॉ.लतिका चावला ने केंद्र में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में कहा कि आईवीएफ केंद्र में पुरुष शुक्राणुओं की जांच हेतु एंड्रोलॉजी लैब ने कार्य करना शुरू कर दिया है और केंद्र में अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आईयूआई) की सुविधा भी उपलब्ध है। इसके अलावा इस केन्द्र में आईवीएफ प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में एम्स ऋषिकेश संतान से वंचित ऐसे माता-पिता का भी इलाज करेगा। जिनके शरीर में अंडाणु या शुक्राणु नहीं बनते और जिन्हें स्पर्मदाता की आवश्यकता होती है। इस मौके पर एम्स प्रशासन के प्रो. यूबी मिश्रा, प्रशासनिक अधिकारी शशिकांत, वित्तीय सलाहकार कमांडेंट पीके मिश्रा, गायनी विभाग की प्रोफेसर शालिनी राजाराम, डॉ. अनुपमा बहादुर, डॉ. कविता खोईवाल, डॉ. अमृता गौरव आदि थे।