नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क पर सहमति जताई कि लाभ के पद के मुद्दे को लेकर भाजपा के 12 विधायकों की अयोग्यता पर चुनाव आयोग की सिफारिश पर मणिपुर के राज्यपाल अपने फैसले को बताने से पीछे नहीं हट सकते। शीर्ष अदालत मणिपुर विधानसभा के एक कांग्रेस विधायक डीडी थैसी की एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 12 भाजपा विधायकों को संसदीय सचिवों के पद पर रहने के आधार पर अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि सांविधानिक अथॉरिटी के द्वारा फैसले को लंबित नहीं रख जा सकता। कार्यकाल समाप्त होने में सिर्फ एक महीना बचा है और तब सब कुछ खत्म हो जाएगा। पीठ ने इस दलील पर सहमति जताई कि राज्यपाल निर्णय लेने से पीछे नहीं हट सकते या देरी नहीं कर सकते। राजीव गांधी के दोषियों के मामले का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ऐसे उदाहरण हैं जहां राज्यपाल को निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया गया। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि चुनाव आयोग की राय राज्यपाल के लिए बाध्यकारी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर राज्यपाल के सचिव को नोटिस जारी किया। अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।