राजस्थान/पुष्कर। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध में सत्य स्वरूप परमात्मा को प्रणाम किया गया है। मानव जीवन का श्रेय क्या है समस्त शास्त्रों का सार क्या है, भगवान के अवतार का प्रयोजन क्या है? भगवान अवतार लेकर क्या करते हैं, भगवान के कुल कितने अवतार हुए, गवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं कि- जब-जब धर्म में ग्लानि होती है तो अवतार लेकर मैं धर्म की रक्षा करता हूं। लीला संवरण करके भगवान् जब अपने धाम पधार जाते है तो धर्म किसकी शरण में जाता है। इन छः प्रश्नों के उत्तर में ही सूतजी ने शौनकादि महर्षियों को श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा सुनायी। सर्वप्रथम भक्ति की महिमा का वर्णन किया। भगवत तत्व को श्रवण करने से हृदय में भक्ति उत्पन्न होती है। आप बड़ों की सेवा, संतों की सेवा और धर्म के प्रति श्रद्धा रखते हैं। तभी भगवान् की कथा सुनने में रूचि होती है और जब कथा श्रवण की रुचि होती है, तभी कथा सुनने को मिलती है। कथा का फल है हृदय का प्रक्षालन। हृदय जब प्रक्षालन हो जाता है, तब ह्रदय में भगवान की भक्ति स्थिर होती है, दृढ़ होती है। यही भवसागर से मुक्ति का साधन है। जब भक्ति के द्वारा हृदय में भगवत् साक्षात्कार कर लेते हैं। हृदय की ग्रंथियों का भेदन हो जाता है। जीवन के सारे संशय मिट जाते हैं। पाप पुण्य जितने कर्म है, जो बंधनकारक हैं, समाप्त हो जाते हैं, यही मानव जीवन की सफलता है। महाराज परीक्षित की सभा में श्री शुकदेव जी का आगमन, चतुःश्लोकी भागवत और विदुर चरित्र की कथा का गान किया गया। कल की कथा में शिवचरित्र, ध्रुवचरित्र, जड़भरत रहूगण संवाद, अजामिल उपाख्यान और भक्त प्रल्हाद जी महाराज का मंगलमय चरित्र, नृसिंह अवतार की कथा का गान किया जायेगा। शंभूगढ़ की पावन भूमि, पूज्य महाराज श्री-श्रीघनश्याम दास जी महाराज की पावन सानिध्य में श्रीमद्भागवतसप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा के दूसरे दिन भक्त विदुर जी की कथा का गान किया गया, कल की कथा में भक्त प्रह्लाद जी महाराज की मंगलमय कथा का गान किया जायेगा।