नई दिल्ली। मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने कहा कि चुनावों में समावेशी साझेदारी सुनिश्चित करने में देश ने उल्लेखनीय दूरी तय की है। पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक सात दशक और 17 आम चुनावों के बाद मताधिकार का प्रयोग करने में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक हो गई। 2019 के आम चुनाव में उनकी भागीदारी 67 प्रतिशत से अधिक थी। महिलाओं, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों की चुनावी भागीदारी में वृद्धि विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में उन्होंने ने कहा कि जब सभी वर्ग के लोगों का पूर्ण प्रतिनिधित्व होता है तो लोकतंत्र व लोकतांत्रिक संस्थान फलते-फूलते हैं। ज्यादातर देशों और क्षेत्रों में महिलाओं को टुकड़ों में वोट देने का अधिकार मिला। महिलाओं को समान मताधिकार देने में अमेरिका को 144 साल लग गए। भारत में आजादी के साल से ही महिलाओं को मत देने का अधिकार हासिल था। हालांकि इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई भारतीय महिलाओं ने मतदान के समान अधिकार के लिए अभियान चलाया। उन्होंने कहा, भारतीय मताधिकार आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में अधिक से अधिक महिलाओं की भागीदारी के साथ गति पकड़ी। उन्होंने बताया कि जमीनी स्तर पर महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने में वास्तविक चुनौती तब पेश आई, जब बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। वे फलाने की पत्नी या फलाने की मां के तौर पर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहती थीं। पर निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी करना पड़ा कि नाम पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा है और महिला मतदाताओं को अपने नाम का पंजीकरण कराना चाहिए। सार्वजनिक अपीलें की गईं और महिला मतदाताओं को पंजीकरण कराने में सक्षम बनाने के लिए अभियान को एक महीने का विस्तार दिया गया।