नई दिल्ली। केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि देश की क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत किए जाने की जरूरत है। जब क्षेत्रीय भाषाएं मजबूत होंगी तब हिंदी स्वयं ही मजबूत हो जाएगी। इसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता नहीं है। केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि हर संस्कृति में कुछ ऐसे विशेष कार्य, भाव और परंपराएं होती हैं, जिसे किसी दूसरी संस्कृति में नहीं पाया जाता। ऐसे शब्दों का अनुवाद कभी संभव नहीं होता, इसलिए सभी क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण किए जाने की जरूरत है जिससे वे विशेष शब्द अपनी मूल भाव में लोगों के सामने उपस्थित रहे। केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने गुजरात का एक उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य में पशुओं को पानी पिलाने की जगह को अवीडा और चीटियों को खिलाने के लिए कीडा शब्द का उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह भारत की विशेष संस्कृति है जहां पर पशुओं और चीटियों को भी इतना विशेष सम्मान दिया जाता है। इसीलिए हमारी सभ्यता में इन शब्दों का विकास हुआ है। लेकिन क्योंकि दूसरी संस्कृतियों में इस तरह की भावना कभी विकसित नहीं हुई। इन कार्यों के लिए उनके पास कोई शब्द भी नहीं है। यही कारण है कि इन शब्दों का अनुवाद दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में संभव नहीं है। केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि इन शब्दों के मूल भाव को संरक्षित रखने के लिए स्थानीय भाषाओं का संरक्षण किया जाना बहुत जरूरी है। विचारों के कठिन ट्रांसलेशन की तरफ लोगों का ध्यान दिलाते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संसदीय कार्यों को करते हुए कई बार उनके सामने भी इस तरह के शब्द सामने आते हैं जिन्हें समझने में उन्हें भी बहुत कठिनाई महसूस होती है। उन्होंने कहा कि जब हम जैसे लोग भी इन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाते हैं तो सामान्य लोग ऐसे शब्दों का भाव कैसे समझ पाएंगे। उन्होंने कहा कि तकनीकी के विकास के कारण स्थानीय भाषाओं के सामने अस्तित्व की समस्या उतपन्न हो गई है। इसे बचाने के लिए विशेष पूसरे दलों के पास दिखाई नहीं पड़ रही है।