नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कह है कि कोई भी डॉक्टर अपने मरीज को जीवन का आश्वासन नहीं दे सकता। वह केवल अपनी सर्वोत्तम क्षमता से इलाज करने का प्रयास कर सकता है। अगर किसी कारणवश मरीज जीवित नहीं बच पाता है, तो डॉक्टरों पर चिकित्सकीय लापरवाही का दोष नहीं लगाया जा सकता। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने बॉम्बे अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र की याचिका को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें चिकित्सा लापरवाही के कारण मरीज दिनेश जायसवाल की मौत के लिए आशा जायसवाल और अन्य को 14.18 लाख रुपये का भुगतान देने का आदेश दिया गया है। मामले के रिकॉर्ड और तर्कों को देखने के बाद पीठ ने कहा, यह एक ऐसा मामला है जहां रोगी अस्पताल में भर्ती होने से पहले भी गंभीर स्थिति में था लेकिन सर्जरी और पुन: अन्वेषण के बाद भी यदि रोगी जीवित नहीं रहता है, तो इसे डॉक्टरों की गलती नहीं कहा जा सकता। यह चिकित्सकीय लापरवाही का मामला नहीं बनता। पीठ ने शिकायतकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि चूंकि सर्जरी एक डॉक्टर द्वारा की गई थी, इसलिए वह अकेले ही रोगी के इलाज के विभिन्न पहलुओं के लिए जिम्मेदार होगा। पीठ ने इसे गलत धारणा’ करार दिया।