जीवन में संकट आए तो ठहरकर करना चाहिए विचार: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। बच्चा जब खाने बैठता है तब उसको रुलाना नहीं चाहिये। प्रसन्नचित्त होकर वह भोजन करे, तो वह उसकी सेहत के लिये ठीक है। ऐसा नहीं होगा, तो विपरीत असर होगा। अन्न बिष बन जायेगा। मन में क्रोध हो, मन प्रसन्न न हो। ऐसी मनोस्थिति में भोजन करेंगे, तो विपरीत असर होगा। भोजन करने बैठो तब यज्ञभाव से भोजन करो। जिसके कारण भूख लगती है, वह वैश्वानर अग्नि हमारे उदर में है। मैं भोजन करता हूं, तो उनको ही आहुति देता हूं। ऐसे भाव से यदि भोजन करेंगे, तो यज्ञ का फल मिलेगा। गुरु और शिष्य पहले शिक्षा के क्षेत्र में गुरु परम्परा थी। आज इसमें भी व्यवसायिकता घुस गई है। आज का शिक्षक विद्या नहीं देता, विद्या देने के लिए नौकरी करता है, तनखा लेता है और उसे बढ़वाने के लिए हड़ताल तक करने में नहीं चूकता। प्रश्न पत्र आउट होते हैं, रिश्वत लेकर अंक बढ़ाये जाते हैं। सरेआम डिग्रियां बिक रही है। कहां गई विद्यादान की आदर्श परम्परा? जब वह स्वयं नौकर हैं, तो बदले में आदर्श शिष्य नहीं, नौकर ही पैदा करता है, जिसकी बाढ़ आज स्पष्ट नजर आती है और हड़ताले होते हैं। हम अबोध बालक के समान हैं। अज्ञानी लोग मोहनिशा में सोये हुए हैं, उनको भगवान चुटकी भरके जगाते हैं। भगवान की यह कठोर कृपा है। जीवन में संकट आवे तो ठहर करके विचार करना, उसके पीछे हम स्वयं ही कारण होते हैं और हम सुधार भी कर सकते हैं। कोई संकट आता है, यह भी परमात्मा की कृपा है।
भाग्य की चपेट में आकर करोड़पति से रोडपति हो जाता है। सीधे ही फुटपाथ पर आ जाता है, सब चला जाता है। पैसे जाते रहते हैं तो स्वार्थ के सगे सम्बन्धी भी दूर होने लगते हैं। तब उसको समझ में आता है कि इन सबको मेरे पैसे में प्रेम था। तब उसे वास्तविक स्थिति का ख्याल आता है कि मेरे सच्चे सगे परमात्मा है। आदमी जब तक काम का होता है, तब सब उसका ध्यान रखते हैं। पत्नी, पुत्र सब। जिसकी आमदनी होती है, उनकी पूजा करते हैं। जब वह निवृत हो जाते हैं फिर उनको कोई बुलाने के लिए नहीं आते। सिर्फ परमात्मा ही उनके सच्चे स्नेही बनकर रह जाते हैं। संसार का यह वास्तविक सत्य श्रीकृष्ण सबको अपने लीला के द्वारा समझाते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।