हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश के उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने आईआईटी मुंबई के साथ मिलकर मिसाइल और लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग कर पहली स्वदेशी एंटी हेल गन तैयार की है। इस गन की खास बात यह है कि एसिटिलीन गैस से नहीं बल्कि एलपीजी से कार्य करेगी और विदेशी एंटी हेल गन से सस्ती होगी।
उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के पर्यावरण विभाग अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज ने बताया कि हवाई जहाज के गैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है। इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दागा जाता है। इस हल्के विस्फोट से एक शॉक वेव (आघात तरंग) तैयार होती है।
यह शॉक वेव एंटी हेल गन के माध्यम से वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर का स्थानीय तापमान बढ़ा देती है। इससे ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। इन दिनों इस गन के ट्रायल पर शोध चल रहा है। इसमें गन कितने क्षेत्र में बादलों के अंदर ओले बनने की प्रक्रिया रोक सकती है, इस पर कार्य किया जा रहा है।
गन को लगाने सहित इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब दस लाख होगा, जबकि बाद में एलपीजी गैस पर ही खर्च होगा। एंटी हेल गन विदेशों से खरीदने पर करीब 50 से 70 लाख की कीमत पड़ती है, लेकिन इस गन को सस्ते दामों में प्रदेश में ही तैयार किया जा रहा है। यदि इस गन का ट्रायल सफल रहता है तो जिले के अन्य क्षेत्रों में भी इसे लगाने की योजना है। प
हाड़ी राज्यों में ओलावृष्टि से किसानों-बागवानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है। इस वर्ष भी ओलावृष्टि से टमाटर, शिमला मिर्च, गेहूं समेत प्लम, आडू और सेब को करीब दो करोड़ का नुकसान हुआ है। नौणी विवि और आईआईटी मुंबई के सहयोग से बनाई जा रही एंटी हेल गन से लाभ मिलेगा। ओलावृष्टि वाले संभावित क्षेत्रों में गन से विस्फोट कर वायुमंडल में बादलों के अंदर का स्थानीय तापमान बढ़ाकर ओला बनने की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकेगा। विवि के वैज्ञानिक इस पर शोध कार्य कर रहे हैं।