साधनरत सूरत ही कर सकती है इस जगत का अनुभव: दिव्‍य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य की प्रकृति बाह्यमुखी या अंतर्मुखी होती है। बाह्यमुखी वाले दुनियांदारी में ज्यादा ध्यान देते हैं व अंतर्मुखी वाले अध्यात्म में यानी दुनियांदारी के पीछे न दिखाई देने वाली जो शक्ति है, उसमें अर्थात ईश्वर में,  व उनके द्वारा बनाई हुई प्रकृति की खोज में। बच्चों की अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार ही उनका विकास होने देना चाहिए।

मनुष्य के बाहरी रूप अथवा जाति की अपेक्षा उसके ज्ञान या गुणों में ध्यान देना चाहिए एवं उनकी प्रशंसा करते रहना चाहिए।यह संसार द्वैत की नगरी है, जैसे- सुख-दुःख, शांति-अशांति, अमीर-गरीब, काला-गोरा, ऊंचा-नीचा आदि। इससे ऊपर उठकर अद्वैत, सत्य, भेदभाव रहित स्थिति को प्राप्त करना ही हमारा प्रयत्न होना चाहिए।

यह जगत परमात्मा की मौज का खेल, नाटक, लीलारुपी सृष्टि है, इसका अनुभव साधनरत सूरत (जीवात्मा) ही कर सकती है। जीवन साधना का अर्थ है जीवन को अपने समाज हेतु उपयोगी बनाना । सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

 




 

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