भगवान श्रीराम की वांग्मयी मूर्ति है रामायण: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परमं पूज्‍य संत दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रथम हम लोग विचार करेंगे कि इस महान ग्रंथ का नाम रामायण क्यों रखा गया। उन्‍होने कहा कि अलग-अलग संतो ने अपने अलग-अलग अभिप्राय दिये हैं। श्री रामस्य चरितान्वितं अयनं शास्त्रं श्रीराम चरित्र से संयुक्त शास्त्र है इसलिए इसको रामायण कहा गया है। श्री बापू ने आगे कहा कि रामायण भारतवर्ष का गौरवपूर्ण इतिहास है, पूरी दुनियां में कोई ऐसा महापुरुष नहीं हुआ जिसका जीवन चरित्र ही धर्मशास्त्र बन गया हो। रामायण में भगवान राम के प्राकट्य से लेकर संपूर्ण जीवन चरित्र का बड़े ही विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्‍होने कहा कि श्रीरामःअय्यते प्राप्यते रामायण की आराधना उपासना करने से भगवान श्रीराम की प्राप्ति हो जाती है। राम जी की प्राप्ति कराने वाला है, इसलिए इसका नाम रामायण है। रामायण आयन का अर्थ निवास स्थान होता है, रामायण का अर्थ हुआ भगवान राम का निवास स्थान जहां श्रीसीता, लक्ष्मण और समस्त परिकरों के साथ भगवान श्रीराम विराजते हैं। इसलिए इसका नाम रामायण है। रामायण आयन का अर्थ मार्ग भी होता है। रामायण का अर्थ भगवान श्रीराम की प्राप्ति का मार्ग। रामायण के बताए हुए मार्ग पर चलकर हम प्रभु श्रीराम की प्राप्ति कर सकते हैं। रामायण भगवान श्रीराम की वांग्मयी मूर्ति है। रामायण और भगवान राम में अंतर नहीं है। भगवान श्री राम का सुमिरन, चिंतन, ध्यान करने से जिस तरह जीव का कल्याण होता है। रामायण का सुमिरन, चिंतन, ध्यान करने से उसी तरह जीव का कल्याण होता है। प्रथम दिवस की कथा में रामायण की महिमा, श्रीराम कथा की महिमा, सत्संग की महिमा, मंगलाचरण एवं वंदना प्रकरण की कथा का गान किया गया। कल की कथा में नाम महिमा, श्रीरामचरितमानस सरोवर एवं भारद्वाज याज्ञवल्क्य संवाद की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।

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