पुष्कर/राजस्थान। इस जीवन का नाम ही संघर्ष है। मनुष्य जन्मता है तभी से संघर्ष शुरू हो जाता है। अपने पैरों पर खड़े रहने के लिये, स्वाश्रयी बनने के लिये, वह संघर्ष करता है। कभी तो सारा जीवन संघर्ष में बीत जाता है। श्रीकृष्ण का जीवन संघर्ष की कथा है। उनका सारा जीवन और उनकी सारी लीला संघर्ष में से किस तरह से उन्होंने विजय पायी वह हमें बताती है। भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म ही कारागार में हुआ और जन्म होते ही संघर्ष शुरू हो गया। जन्म के कुछ मिनटों के बाद ही भगवान् को गोकुल जाना पड़ा। फिर तो संघर्ष की यात्रा भगवान् श्रीकृष्ण की हर लीला में आपको देखने को मिलेगी। भगवान् ने हमें बताया कि जन्म के साथ ही संघर्ष शुरू हो जाता है। यह जीवन कुरुक्षेत्र है और उसमें हमें लड़ना पड़ेगा। इस युद्ध में एक बात समझने जैसी है कि युद्ध में भगवान् हमारे साथ हैं, वे हमें कभी छोड़कर नहीं जाते। गीता भगवान् का संदेश सुनाती ही रहती है। कई लोग ऐसा सोचते हैं कि हमारे बच्चे अगर गीता पढ़ेंगे तो सन्यासी हो जायेंगे। मगर गीता भागने का संदेश देती ही नहीं है। अर्जुन भाग रहा था तो भगवान ने गीता गाकर उसे रोका है और युद्ध के लिए प्रेरित किया। गीता कर्म करने का संदेश देती है। भगवान् मेरे साथ हैं। यह युद्ध मेरा है। मुझे ही युद्ध करना पड़ेगा, यह जीवन एक संग्राम है। इस संग्राम में अर्जुन बनकर हम खड़े हैं। मगर युद्ध की जब बात आती है तो उसमें पलायन वृत्ति आ जाती है। ऐसे पलायनवाद को कई बार हम वैराग्य का नाम दे देते हैं मगर यह वैराग्य नहीं है। पार्थ का अर्थ होता है पुरुषार्थ। योगेश्वर कृष्ण भगवान् की कृपा का नाम है। भगवान् उनकी ही मदद करते हैं जो खुद अपनी स्वयं की मदद करते रहते हैं। इसलिये युद्ध तो हमें ही करना पड़ेगा। सबसे पहले पुरुषार्थ का सेतु हमें बनाना पड़ेगा और उसके ऊपर भगवान राम खड़े रहेंगे। भगवान कहते हैं मैं, जहां आकर खड़ा रहता हूं। उनसे पूर्व तुम पुरुषार्थ के सेतु का निर्माण करो। तुम मुझे बताओ तो सही मेरे पांव मैं कहां टिकाऊँ। मेरे पांव टिकाने के लिये जगह तो चाहिए। तू पुरुषार्थ कर, मैं आ सकूं, मैं खड़ा रह सकूं। एक बार मैं आ जाऊंगा तो फिर तेरे लिये सब रास्ते सेतू बन जाएंगे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।