पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि सबसे बड़ा है भवरोग। भवरोग मिटाने वाली है भागवत कथा। भवरोग मिटाने वाली औषधि कड़वी हो तो भी पीना पड़ता है। यह भागवत कथा मीठी अमृत्तुल्य है।
भावरोग नाश करने वाली है। यह औषधि मुंह से पीने की नहीं है, कान से पीने की है। यह औषधि देने वाला वैद्य लालची नहीं होना चाहिये। भागवत कथा निवृत्त शुखदेव जी महाराज जैसे वैद्य ने दी है।
कथा मनोरंजन के लिये नहीं, मनोमंथन के लिये है। ज्ञान तो हमारे पास है, लेकिन हम उसका आदर नहीं करते। सत्य तो हमारे पास है, उसका आदर नहीं करते। हमें सत्य और ज्ञान का आदर करना चाहिए। तदनुसार जीवन बनता है।
श्री कृष्ण ने यही किया, असमर्थ के साथ करुणा, लेकिन समर्थ के साथ न्याय। आसुरी वृत्ति के व्यक्तियों के हाथ में धर्म न जाय। ऐसे लोगों को मारकर धर्म को स्थापित करना अवतार कार्य है। समाज के लोग जागें। जागृति आये, विचारवंत हों।
दुनियां को जितना परेशान बुद्धिमानों ने किया है, उतना पागलों ने नहीं किया। पागल जितना उपद्रव नहीं करते, उतना तथाकथित बुद्धिमान उपद्रव करते हैं। धर्म के नाम पर आज लड़ाई ज्यादा है। धर्म विज्ञान को नहीं समझा, इसलिये यह लड़ाई झगड़ा है।
धर्म विज्ञानमय हो और विश्व के विज्ञान में धर्म हो। विज्ञान धर्ममय नहीं होगा तो विज्ञान द्वारा विकास कम, विनाश ज्यादा होगा। विज्ञान का उपयोग कैसे होगा? विज्ञान विकास के काम आये या विनाश हो। धर्म ही समाधान है, धर्म ही समस्या है। दोष धर्म का नहीं है, दोष तथाकथित धार्मिको का है।
धर्म गलत हाधों में गया तो समस्या बनेगा अगर सही हाथों में गया तो समाधान होगा। स्वयं की ओर यात्रा करें, अपने स्वरूप में स्थित रहे वही स्वस्थ है।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।