नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने सूरज की सतह से लगातार निकलने वाली लपटों के विज्ञान का पता लगाया है। भारत और इंग्लैंड के शोधकर्ताओं की एक टीम के मुताबिक यह प्लाज्मा के जेट (लपटें) या स्पिक्यूल्स, पतली घास जैसी प्लाज्मा संरचनाओं के रूप में दिखाई देते हैं, जो सतह से लगातार ऊपर उठते रहते हैं और गुरुत्वाकर्षण द्वारा नीचे आते हैं। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में खगोलविदों के नेतृत्व में भारत और इंग्लैंड के शोधकर्ताओं की टीम ने सूर्य के स्पिक्यूल्स की उत्पत्ति की व्याख्या की है।
टीम ने भारत से तीन सुपर कंप्यूटरों का इस्तेमाल किया, जिससे व्यापक समानांतर वैज्ञानिक कोड को चलाया जा सके। डीएसटी के मुताबिक जिन प्रक्रियाओं के जरिये सौर हवा को प्लाज्मा की आपूर्ति की जाती है और सौर वायुमंडल एक मिलियन डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था होती है, जिसमें विद्युत रूप से आवेशित कण मौजूद होते हैं और सूर्य के क्रोमोस्फीयर में हर जगह रहते हैं।
सूरज के वातावरण की तीन प्रमुख परतों में दूसरी क्रोमोस्फीयर होती है, जो कि तीन से पांच हजार किमी गहरी होती हैं। यह लाल रंग की दिखाई देती हैं। स्पिक्यूल डायनेमिक्स के गणित को समझते समय टीम ने एक ऑडियो स्पीकर की मदद ली। इसके जरिए फिल्मों में सुनाई देने वाली गड़गड़ाहट की आवाज की तरह कम आवृत्तियों पर पैदा होने वाली विक्षोभ या उद्दीपन पर प्रतिक्रिया देते हैं। ऐसे स्पीकर पर जब कोई तरल पदार्थ रखा जाता है और संगीत चालू किया जाता है।