पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि करुणावान्-भागवत् की शुरुआत होती है आदि नारायण से। कथा सुनाई करुणा से। ब्रह्मा जी ने सुनाई नारद जी को यह भी करुणा है। नारद जी ने सुनाई वेद व्यास जी को करुणा से। वेदव्यास जी ने दिया शुकदेव जी को करुणा से और शुकदेव जी ने दिया परीक्षित को, यह भी करुणा से दिया है । स्वाध्याय करने वाला कठोर नहीं हो सकता। वह करुणावान् होगा ही। आध्यात्मिक प्रवचन- वक्ता अगर चिंतन नहीं करता है, स्वाध्याय नहीं करता है और प्रवचन में प्रमाद करता है तो उसका प्रवचन फीका पड़ जायेगा। स्वाध्याय करने से करुणा जन्मती है और करुणा के बादल बरसे बिना रहते नहीं है। करुणा के बादल बरसने का नाम है प्रवचन देना। योग की प्राप्ति- श्री भगवान् कहते हैं जिसका मन बश में नहीं है उनके लिए योग का प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं यह मेरा मत है। परन्तु मन को वश में किए हुए प्रयत्नशील पुरुष साधना द्वारा योग प्राप्त कर सकते हैं।
मानव मात्र की बड़ी भूल-भगवान् श्री कृष्ण के वचनों के अनुसार यह सिद्ध होता है कि मन को बश में किये बिना परमात्मा की प्राप्ति दुष्प्राप्य है। यदि कोई अपनी इच्छा अनुसार निरंकुश होकर विषय वाटिका में स्वच्छंद विचरण किया करे और परमात्मा के दर्शन अपने आप ही हो जाये तो यह उसकी भूल है। परमात्मा की प्राप्ति चाहने वालों को मन बश में करना ही पड़ेगा, इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है। परंतु मन स्वभाव से ही बड़ा चंचल और बलवान है, इसे बश में करना कोई साधारण बात नहीं है। इस पर विजय मिलते ही मानो विश्व पर विजय मिल जाती है। इसके लिए दीर्घकाल तक सत्संग और सदा सत्संग की आवश्यकता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।