नई दिल्ली। देश में खुदरा महंगाई की दर आठ वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंचना जनता के लिए अत्यन्त कष्टकारी हो गया है। पेट्रोल, डीजल और ईंधन गैस के मूल्यों में बढ़ोतरी के चलते जनता की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। खाद्य तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से आमजन की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। इसलिए केन्द्र सरकार ने सोच-समझ कर गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का उचित कदम उठाया है। इससे महंगाई पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। साथ ही सरकारी योजनाओं के लिए भी देश में खाद्यान्न की कमी नहीं होने पायगी। इससे गेहूं की जमाखोरी पर भी बड़े पैमाने पर लगाम लगाने में सहायता मिलेगी।
अब शीघ्र ही गेहूं के मूल्यों में कमी आएगी और यह निर्धारित कीमत 2015 रुपये प्रति क्विण्टल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के निकट पहुंच जाएगी। दिल्ली के बाजार में गेहूं का मूल्य लगभग 2340 रुपये प्रति क्विण्टल है, जबकि निर्यात के लिए बन्दरगाहों पर यह 2575-2610 रुपये प्रति क्विण्टल के स्तर पर है।
इस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं का मूल्य 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका हैं, जबकि घरेलू बाजार में एक वर्ष में गेहूंका मूल्य 13 प्रतिशत बढ़ा है। निर्यात पर रोक लगाने से गेहूं का मूल्य घटेगा और आटा भी सस्ता हो जायगा। अप्रैल में गेहूं के आटे का औसतन खुदरा मूल्य 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो जनवरी 2010 के बाद सबसे अधिक है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान हालात को देखते हुए सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर अच्छा कदम उठाया है। यह जनता के हित में भी है। वैसे सरकार ने इस वर्ष एक करोड़ टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा था। पिछले वर्ष 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया था। रूस-यूक्रेन युद्ध से पूरे विश्व में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए भारत को इससे बचाने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध आवश्यक हो गया था।