नई दिल्ली। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों और चुनौतियों से उत्पन्न आशंकाओं के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था का वित्त वर्ष 2021- 22 की चौथी तिमाही में 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। आर्थिक चुनौतियों के बीच इसे संतोषजनक ही माना जायगा। इससे यह भी साफ हो गया कि अर्थव्यवस्था में सुधार का क्रम जारी है और इससे रोजगार के अवसर बढ़ने की उम्मीद भी जगी है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एमएसओ) ने दो दिन पहले विकास दर से सम्बन्धित आंकड़े जारी किया लेकिन इसके पहले आर्थिक विशेषज्ञों ने विकास दर में कमी की आशंका व्यक्त की थी। इसके कारण शेयर बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हो गया था।
वैश्विक रूप से प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वित्त वर्ष 2022- 23 में भी भारतीय विकास दर में भी मजबूती कायम रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और महामारी के प्रभाव से जिंसों के दाम बढ़ने से चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में सुस्ती आयी है। महामारी की तीसरी लहर और जिंसों के दामों में तेजी का प्रभाव पड़ा है। भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार बी. अनन्त नागेश्वरन का मानना है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत के समक्ष अर्थव्यवस्था में सुस्ती के साथ ऊंची मुद्रास्फीति को लेकर जोखिम काफी कम है।
चौथी तिमाही में सेवा क्षेत्र में 3.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी आश्चर्यजनक है। पूरे वित्त वर्ष के दौरान 8.7 प्रतिशत जीडीपी विकास वास्तविकता के निकट है। बुनियादी उद्योगोंका उत्पादन 8.4 प्रतिशत बढ़ना ओर राजकोषीय घाटा का जीडीपीके 6.7 प्रतिशत के स्तर पर रहना भी सकारात्मक है। यह सत्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ी है। इसके बावजूद कुछ चुनौतियां भी हैं। इससे निबटने के लिए मजबूत प्रयास करने होंगे। महंगाई, बेरोजगारी इनमें प्रमुख है। इन दोनों का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था से है। इसे काबू में लाना होगा तभी क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में गतिशीलता भी आएगी। जहां तक निवेश का मामला है, उससे सम्बन्धित चुनौतियों का भी सफलतापूर्वक सामना करना आवश्यक है, जो अर्थव्यवस्थाको मजबूती प्रदान करेगी।