पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सत्संग-रावन जबहिं विभीषन त्यागा। भयउ विभव बिनु तबहिं अभागा। जब देखा विभीषण जी ने कि रावण मेरे बार-बार निवेदन करने पर भी ध्यान नहीं दे रहा है तो मंत्री को साथ में लेकर विभीषण चल पड़े। यह कहकर कि अब मैं श्री राम की शरण में जा रहा हूं और भाई, समझ लो कि अब तुम्हारी सभा, काल के वशीभूत हो चुकी है। निकट भविष्य में अब मृत्यु निश्चित है, कहकर चल पड़ा और जब जा रहा है -तो अस कहि चला विभीषनु जबहीं। आयु हीन ठीक तो है। शरीर कब तक रहेगा? जब तक इसमें आत्मा रहेगी और आत्मा निकल जाए तो? तो लंका और लंका के वासी ये तो शरीर है। अभी तक लंका वासियों की सुरक्षा किसके द्वारा हो रही थी, विभीषण के द्वारा, लेकिन जब आज चले तो आयुहीन। सबके सब खत्म हो गये, साधु अवज्ञा तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी।। आप साधु का अपमान करेंगे, संत को आप दुःखी करेंगे तो आपके जीवन में सुरक्षा नहीं रहेगी। आपके समस्त मंगल, अमंगल के रूप में बदल सकते हैं, यदि आपने साधु की ज्यादा अवज्ञा-अवहेलना की तो। ध्यान रखना इस बात को। भाग्यवान कौन है? जिससे संत का संग मिला है और भाग्यहीन कौन है? जिसने संत को त्याग दिया है। रावन जबहिं विभीषन त्यागा। भयउ विभव बिनु तबहिंअभागा। अभी तक अभागा नहीं था, क्योंकि विभीषण साथ में थे और विभीषण ने जैसे ही त्याग वैसे ही भाग्यहीन हो गया। विभीषण को जब त्यागा तो रावण अभागा हो गया। अभागा भाग्यहीन। हम लोग जब मंदिर की ओर चलते हैं तो रास्ते में अपने घर की चर्चा करते आते हैं। लेकिन ये गलत है। जब हम ठाकुर दर्शन करने चले तो उस समय हम ये भाव बनाकर चलें कि आज तो मंदिर में हमको मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि साक्षात् रूप में ठाकुर का दर्शन होगा। कई लोग तो बीड़ी-सिगरेट पीते आते हैं। मंदिर के दरवाजे तक और वहां बुझा कर फिर अंदर घुसते हैं। धुआं मुंह में भरा रहता है और मंदिर में जाकर दर्शन करते हैं। शराबी शराब पिये हैं, मंदिर के अंदर जाकर दर्शन कर रहा है। लोग गंदी बातें करते आते हैं, मंदिर के दरवाजे तक। जब ईश्वर की ओर चलो तो भावना कैसी होनी चाहिए? चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माही। देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुण मृदुल सेवक सुखदाता। जे पद परसि तरी ऋषि नारी। दंडक कानन पावनकारी। जे पद जनक सुता उर लाये। कपट कुरंग संग धर धाये। हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई।। जिन पायन्ह के पादुकन्हि भरत रहे मन लाइ। ते पद आज बिलोकिहउँ इन नैनन अब जाइ। परमात्म दर्शन के लिये जब आप घर से निकलें, मंदिर या सत्संग की और जब आप चलें, तो आपकी भावना कैसी होनी चाहिए, ये विभीषण जी के इन भावों में प्रगट होता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।