पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणैव विलीयते। सुखं दुःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते। दो सिद्धांतों के बीच में मनुष्य का जीवन चलता है एक तो उसके निजकर्म का सिद्धांत और दूसरा भगवान् की करुणा का सिद्धांत। भगवानक श्रीकृष्ण गोवर्धन पूजा के समय वृजवासियों के बीच में कहते हैं कि- मनुष्य को उसके पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म मिलता है और मृत्यु भी कर्मों पर आधारित है। जिसके अच्छे कर्म है उनका जन्म श्रेष्ठ परिवार में होता है और जिसके कर्म न्यून हैं उसका जन्म अश्रेष्ठ परिवार में होता है पूर्व कर्मों के अनुसार हम सबको जन्म मिला है, जैसा भी शरीर मिला है, जैसे भी माता-पिता मिले हैं या जैसा भी घर परिवार मिला है इसके पीछे हमारे पूर्व कर्म ही कारण हैं।ये पूरा जीवन पूर्व कर्मों का परिणाम है। वर्तमान कर्मों का फल आगे मिलने वाला है।पूरा लम्बा चौड़ा जीवन हम जीते हैं बाद में मृत्यु भी कर्मों पर ही आधारित है। अगर हमारे जीवन में अच्छे कर्म हुए हैं तो अच्छी मृत्यु मिलती है और कर्म में कमी है तो मृत्यु भी बिगड़ जाती है। जीवन में जो कुछ सुख-दुःख मिलता है ये सब व्यक्ति के स्वयं के कर्मों का परिणाम है। इसलिए शास्त्रों में बार-बार यह बात लिखी गई है और संत लोग भी अपनी वाणियों में यह कहते हैं कि किसी को दोष देने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में जो कुछ मिला है, मिल रहा है अथवा मिलेगा, वह स्वयं के कर्मों का परिणाम होगा। कर्म किये को भोग है सब काहू को होय। ज्ञानी काटे ज्ञान से मूरख काटे रोय।। कर्म तीन प्रकार के बताये गये हैं। संचितकर्म, प्रारब्धकर्म और क्रियमाणकर्म। जो कर्म आज से पहले अपने द्वारा हुये हैं वे सब संचित कर्म की श्रेणी में आते हैं। जो वर्तमान में कर्म किये जा रहे हैं वे क्रियमाण कर्म बताये गये हैं। लेकिन जो कर्म फल देना शुरू कर दिए हैं उन्हें प्रारब्ध कर्म कहा जाता है। संचितकर्म ईश्वर की आराधना एवं शुभकार्यों के द्वारा समाप्त किये जा सकते हैं, क्रियमाण कर्म भी भजन साधन से शुभ हो सकते हैं लेकिन
मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार मिलता है जन्म: दिव्य मोरारी बापू
प्रारब्धकर्म व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है। यही दृढ़ सिद्धांत है। लेकिन एक प्रश्न है अगर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है तो ईश्वर की आराधना करने से क्या फायदा है? शास्त्रों में लिखा गया है कि परमात्मा की आराधना करने से उनकी करुणा कृपा से जीवन में आने वाले सारे संकट दूर हो जाते हैं। व्यवहार जगत में भी देखते हैं कि अगर किसी को न्यायालय के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया है तो राष्ट्रपति को एक पावर होती है कि- अगर वह व्यक्ति राष्ट्रपति से जीवन दान मांगे तो वे जीवनदान दे सकते हैं। ऐसे ही भगवान की आराधना उपासना हम करें तो भगवान की कृपा से हमारा संपूर्ण जीवन मंगलमय हो जाता है, अतः श्रेष्ठ कर्म और ईश्वर की आराधना प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,
श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।