हेल्थ। आज से कुछ सालों पहले तक की भारतीय जीवनशैली और रहने-खाने के तौर तरीके पूरी तरह बदल चुके हैं। डायबिटीज की समस्या जो हमारे देश में पहले कम लोगों में सामने आया करती थी और वह भी ज्यादातर उम्रदराज लोगों में, अब वह बच्चों और युवाओं में भी आम होती जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो वर्तमान में हम डायबिटीज विस्फोट की स्थिति में बैठे हैं। इस समस्या की गंभीरता जितनी अधिक है उतना ही आसान है इसे नियंत्रित करना भी। कहा जाता है कि डायबिटीज है तो डरिये नहीं, तुरंत नियंत्रण के प्रयास कीजिये।
सामान्य तरीकों से:-
डायबिटीज की समस्या पर नियंत्रण कर पाना बेहद आसान है। शुरुआत में रूटीन को बदलने और निरंतरता बनाये रखने में थोड़ी दिक्कत आती है लेकिन डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए किये जाने वाले अधिकतर उपाय भी आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में आसानी से फिट बैठ सकते हैं। जरूरत बस एक बार इरादा पक्का करने की होती है। कई शोध इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि कुछ बातों को जीवन में लागू करके आसानी से प्री-डायबिटीज और टाइप-2 डायबिटीज को नॉर्मल स्तर पर लाया जा सकता है।
फिर से काम शुरू कर सकती हैं बीटा कोशिकाएं :-
अब तक हुए शोध में यह बात सामने आई थी कि आपको डायबिटीज है, जांच में इस बात के सामने आते ही यह भी स्पष्ट हो जाता है कि आपके पैंक्रियाज की कोशिकाओं की कार्यक्षमता खत्म हो गई। यानी कि पैंक्रियाज की बीटा सेल्स खत्म हो चुकी हैं। यह वही कोशिकाएं हैं जो इन्सुलीन हार्मोन बनती हैं जिससे खून में शकर का स्तर नियंत्रित रहता है। अब कुछ नए शोध इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि समय पर ध्यान दिया जाए और थोड़ी सतर्कता बरतकर उपाय किए जाएँ तो बीटा कोशिकाएं फिर से उत्पन्न हो सकती हैं और अपने काम पर लग सकती हैं।
शुरूआती सतर्कता है जरुरी:-
डायबिटीज हो या प्री डायबिटीज, दोनों ही स्थितियों में शुरूआती समय बहुत नाजुक होता है। यदि आप अपना नियमित चैकअप करवाते हैं तो आपको बढ़े हुए ब्लड शुगर स्तर का पता चलता है, अन्यथा कई बार तो किसी समस्या के होने पर यह सामने आता है कि आप डायबिटिक या प्री डायबिटिक हैं। इसलिए सबसे पहले दो बातों का ध्यान रखें-
– यदि आपके परिवार में डायबिटीज की समस्या है तो अपने डॉक्टर से नियमित अंतराल पर ब्लड शुगर की जांच करवाते रहें। इससे आपको समय रहते समस्या को पकडने और इलाज शुरू करने में आसानी होगी।
– यदि आपके परिवार में किसी को डायबिटीज नहीं है तो भी 35 की उम्र के बाद अपनी वार्षिक जांचें अवश्य करवाएं। कई बार जीवनशैली में बहुत बदलाव, खान-पान का अनियमित होना, किसी प्रकार का हार्मोनल असंतुलन, महिलाओं में मेनोपॉज, घर या दफ्तर का स्ट्रेस आदि भी डायबिटीज का कारण बन सकते हैं।
ऐसे लाएं बदलाव:-
सबसे पहली चीज है आपकी डाइट और भोजनशैली। केवल डायबिटीज ही नहीं लगभग हर बीमारी की जड़ में कहीं न कहीं पेट होता ही है। इसलिए इससे ही शुरुआत करें। अपनी डाइट पर ध्यान दें लेकिन सही तरीके से। किसी एक प्रकार की डाइट को चुनने या खाने की चीजों को त्याग देने से बात बिगड़ भी सकती है क्योंकि आपके शरीर को संतुलित मात्रा में सभी तरह का पोषण चाहिए होता है। इसलिए अपने भोजन के पैटर्न को बदलें और छोटे छोटे बदलाव करें। जैसे सबसे पहले अपने खाने में नियमित फल, सलाद, अंकुरित अनाज, बीन्स, दही, साबुत अनाज, आदि को शामिल करें। इससे आपको वैरायटी भी मिलेगी, स्वाद भी और पूरा पोषण भी। जूस या कार्बोनेटेड ड्रिंक्स को पूरी तरह पानी, छाछ, नीबू पानी (बिना शकर का) से रिप्लेस कर दें।
भोजन का एक नियम बनाएं। शाम को 7 के बाद नहीं खाना है और सुबह भरपेट नाश्ता करना है। अब इसके अनुसार अपने नाश्ते और भोजन के लिए पहले से तैयारी कर लें। जो भी बनायें उसमें सामान्य मसाले और तड़का डालें और पूरे घर के लिए वही भोजन रखें। अचार की जगह चटनी या सलाद का प्रयोग ज्यादा करें। चाय या कॉफी की मात्रा न्यूनतम कर लें और कभी भी खाली पेट चाय-कॉफी न पीएं।
टीवी, लैपटॉप या मोबाइल देखते हुए भोजन करने से बचें। भोजन एकदम शांति से खूब चबाकर करें। हमारे बुजुर्ग जो कह गए हैं कि हड़बड़ाहट में किया गया भोजन तन को नहीं लगता वह बात मेडिकल साइंस भी मानता है। यदि एक साथ 20-25 मिनिट्स भोजन को देने के लिए न हों तो भोजन को टुकड़ों में बांटकर करें। उदाहरण के लिए आप लंच में 2 चपाती, सब्जी, दाल, थोड़े से चावल, दही और सलाद खाते हैं तो इस मात्रा को आधा करके दो बार में खाएं। अगर आपका काम फील्ड में अधिक रहता है तो सुबह एक्स्ट्रा टाइम देकर भरपेट पौष्टिक नाश्ता करके घर से निकलें और फिर पूरे दिन में भरपूर पानी, छाछ, आदि पीएं और फल, सत्तू, भुने चने, ड्राय फ्रूट आदि सीमित मात्रा में खाते रहें। फिर शाम को 7 बजे तक भोजन कर लें। इसके बाद रात को दूध या सूप पीकर सो सकते हैं। भूखे पेट न सोएं।
डायबिटीज में एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है शरीर और दिमाग का संतुलन। कई लोगों में ब्लड शुगर का स्तर स्ट्रेस, तनाव आदि से बढ़ता है। इसलिए मानसिक सेहत पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है। दफ्तर का काम हो या निजी जीवन की उथल-पुथल, सभी स्तरों पर अवांछित तनाव और दबाव आपके स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं। इसलिए ध्यान, मेडिटेशन, संगीत या अन्य रचनात्मक चीजों से जुड़िये। अगर आपके जीवन में समस्याएं हैं तो उनका समाधान ढूंढिए। इसी तरह पर्याप्त नींद लेना भी जरूरी है क्योंकि नींद की कमी भी हार्मोंस असंतुलन में योगदान देती है। अपने सोने-जागने के समय को निर्धारित कीजिये और इसपर अडिग रहिये।