पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि रुद्राक्ष कहां-कहां धारण करें? कितने धारण करें? यह शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है। शिव के परमभक्त कानों में भी रुद्राक्ष की माला धारण कर लेते हैं। सिर में भी पहनते हैं, गले में ही पहनते हैं, बाहों में भी बांध लेते हैं। रुद्राक्ष साक्षात् भगवान् शंकर का स्वरूप है। रुद्र भगवान शंकर का नाम है अक्ष का अर्थ है नेत्र, नाम पड़ा रुद्राक्ष। भगवान् शंकर ध्यान में बैठे थे कि अचानक उनकी आंख खुली और आंखों से अश्रु-विंदु गिर पड़े। उन अश्रु बिंदुओं से रुद्राक्ष नाम का वृक्ष पैदा हुआ। इस रुद्राक्ष को शंकर बाबा ने विभिन्न स्थानों पर स्थापित कर दिया। रुद्राक्ष एक मुख से लेकर चौदह मुख तक होते हैं। जो व्यक्ति रुद्राक्ष की माला गले में पहनता है, वह शिव का स्वरूप ही हो जाता है। शिव भक्तों को सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। जो लोग रुद्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें लहसुन, प्याज और व्यसन से भी बचना चाहिए। एक शंकर-भक्त रुद्राक्ष स्वयं भी पहनता था और अपने सेवक को भी पहना कर रखता था। यद्यपि सेवक ने भजन साधन कोई ज्यादा नहीं किया पर शरीर छूटने पर शंकर के गण आये और उसे शिवलोक ले गये। जो भगवान् विष्णु,राम-कृष्ण को मानते हैं, उनको तुलसी की माला और शिव भक्तों को रुद्राक्ष माला अवश्य पहननी चाहिए। दोनों मालायें एक साथ भी पहनी जा सकती है। पूज्य करपात्री जी महाराज दोनों मालाएं पहनते थे, उनका नाम ही हरिहरानंद था। वे दोनों हरि और हर की उपासना करते थे। दोनों के प्रति उनकी निष्ठा थी। यह सनातन धर्म की विशेष वस्तु है, इन्हें हमेशा धारण करना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।