नई दिल्ली। एक विचारणी मुद्दा यह भी है कि कानून के राज में अगर कानून ही महंगा हो जाय तो आम नागरिकों को न्याय कैसे और कहां से मिलेगा। यह ज्वलंत प्रश्न केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के इस वक्तव्य से उठता है जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय के कुछ वकीलों की एक बार पेशी के लिए दस से 15 लाख रुपये की भारी भरकम फीस पर चिंता व्यक्त की है।
कानून मंत्री की चिंता उचित और विचारणीय है क्योंकि सामान्य व्यक्ति इतना पैसा कहां से लाएगा। ऐसी स्थिति में उसे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। रिजिजू ने जयपुर में शनिवार को विधिक सेवा प्राधिकरणों के सम्मेलन में वकीलों को भारी फीस पर कहा कि कोई भी अदालत कुछ विशिष्ट लोगों के लिए नहीं होना चाहिए। कानून सर्वसुलभ होना चाहिए ताकि सबको न्याय मिल सके।
कानून मंत्री का निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों में स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग की पुरजोर वकालत उचित और प्रासंगिक है। कानूनी प्रक्रिया आसान और समझ में आने वाली होनी चाहिए। न्यायालय का फैसला और आदेश हिन्दी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में वादकारियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। कानून जनता के लिए बनाया गया है और जब जनता ही इसकी प्रक्रिया नहीं समझ सकती तो इसका औचित्य क्या है।
इसलिए कानून की जटिलताएं दूर होनी चाहिए। वकीलों की भारी भरकम फीस भी कानून की जटिलताओं में एक है। आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला हर कारण गम्भीर चिंता का विषय है। इसके लिए सरकार को सोचने की जरूरत है कि सस्ता न्याय लोगों को कैसे मिले। कानून का आर्थिक पक्ष सुगम होना चाहिए ताकि हर आदमी की पहुंच हो सके। वकीलों के अंधाधुंध कमाई पर भी निगाह रखने की जरूरत है। यह वादकारियों और सरकार दोनों के हित में है।