नई दिल्ली। हाईपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर वह स्थिति हैं जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है, दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिए हृदय को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती हैं। उच्च रक्तचाप यह गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकता है और हृदय रोग, स्ट्रोक और कभी-कभी मृत्यु के जोखिम को बढ़ा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संघटन अनुसार उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर एक गम्भीर चिकित्सा स्थिति है जो हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे और अन्य बीमारियों के जोखिम को बढ़ा देती है। उच्च रक्तचाप को कम करने से दिल का दौरा, स्ट्रोक और गुर्दे की क्षति के साथ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव होता है।
इसके लिए नमक का सेवन कम करना (प्रतिदिन पांच ग्राम से कम), अधिक फल और ताजी हरी, अंकुरित सब्जियां खाना, तला- भुना, पापड़, अचार, चाट-मसाला खाने पर लगाम लगाना जरूरी है। नियमित व्यायाम, टहलना, पैदल चलना, साइकिल चलाना, एरोबिक, तैराकी जैसे हल्के-फुल्के शारीरिक व्यायाम करना, वजन संतुलित रखना, सभी तरह के नशे से दूरी, पौष्टिक खाद्य लेना एवं संतृप्त वसा में उच्च खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित करना, अब तो आधुनिक जीवन शैली से दूरी बनाना भी बहुत जरूरी हो गया है।
सबसे जरूरी है खान-पान पर उचित नियंत्रण रखना खाद्य मिलावट, प्रदूषण, शोर, असंस्कृत व्यवहार, यांत्रिक संसाधनोंका अत्यधिक उपभोग के कारण जीवन उलझन भरा हो गया है। बीमारी मुक्त जीवन जीने के लिए जिन्दादिली प्रत्येक मनुष्य को सीखनी चाहिए। दुनिया भर में 30-79 वर्ष की आयु के अनुमानित 1.28 अरब वयस्कों को उच्च रक्तचाप है, जिनमें से अधिकांश (दो-तिहाई) निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
उच्च रक्तचाप से ग्रस्त अनुमानित 46 फीसदी वयस्क स्थिति से अनजान है। उच्च रक्तचाप वाले आधे से भी कम वयस्कों (42 प्रतिशत) का निदान और उपचार किया जाता है। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त पांच में से लगभग एक वयस्क (21 प्रतिशत) में यह नियंत्रण में होता है। उच्च रक्तचाप दुनियाभर में अकाल मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
हर दस में से तीन भारतीय हाई ब्लडप्रेशर से पीड़ित हैं। हाइपरटेंशन मौत और विकलांगता का चौथा सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर भी है। भारतमें लगभग 20 करोड़ वयस्कों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है। उच्च रक्तचाप के साथ रहने वाले वयस्कों (30-79 वर्ष) का प्रतिशत 1990 में 25.52 से बढ़कर 2019 में पुरुषों में 3059 फीसदी और महिलाओं में 26.53 से 29.54 फीसदी हो गया है।