पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वेद में लिखा है, ईश्वर किसको मिलता है? ईश्वर जिससे मिलना चाहे उसी को मिलता है। ईश्वर जिसको मिलना चाहता है, उसके अंदर भक्ति का अंकुर पैदा कर देता है और ईश्वर प्राप्ति की व्याकुलता पैदा करता है, जिससे ईश्वर की प्राप्ति होती है। जब कोई व्यक्ति निरन्तर सत्कर्म एवं ईश्वर की आराधना में लगा रहता है तो भगवान् उसके ऊपर कृपा करते हैं। जब जीव साधना करने चलता है तो प्रारंभ में जो उसकी वृत्ति बनती है, यदि वह वृत्ति सदा बनी रहे, तब परमात्मा कभी उससे दूर नहीं रह सकता। वृत्ति बनती है प्रभु कृपा से, गुरु कृपा से। अपने प्रमाद से वह वृत्ति बिगड़ती है और जब उस रस का आस्वादन नहीं हो पाता, तब ऊंची कोटि का साधक तड़पने लगता है। व्याकुल होकर ईश्वर को ढूंढता है। उसमें उन्माद आता है, उन्माद मायने पागलपन जैसा आ जाता है, फिर वह जगह-जगह ढूंढता है और ढूंढते-ढूंढते थक जाता है, अपनी शक्ति खो बैठता है। तब उसे लगता है कि साधन से ईश्वर नहीं मिल सकता। शक्ति क्षीण हो जाती है, तब वह असहाय होकर, असमर्थ होकर गाता हुआ रोता है और रोता हुआ जब व्याकुल होता है तब प्रभु की उस पर कृपा होती है। यह साधन का क्रम संतो ने बताया है। व्रज के भक्तों की बिल्कुल यही स्थिति है। भगवान् के भक्त बांसुरी की आवाज सुनकर चल पड़े। बांसुरी को भगवान् शंकर माना गया, गर्ग संहिता के अनुसार-” वंशस्तु भगवान रुद्रः ” शंकर जगत- गुरु हैं। ” तुम त्रिभुवन गुरु वेद बखाना।” बांसुरी ने गोपियों को भगवान् श्री कृष्ण के पास लाकर खड़ा कर दिया। आनंद का जब अनुभव हुआ, तब आनंद पाकर भक्तों की वृत्ति भगवान् श्रीकृष्ण से हटकर अपने में आ गई और जब चित्त वृत्ति अपने में आ गई तो ईश्वर अंतर्धान हो गये। जीव जब साधना करता है, तब साधन के फल से उसे सुख मिलता है और जब सुख मिलने लगता है, तब जीव ईश्वर को भूलने लगता है, जब भूलने लगता है,तब ईश्वर अंतर्धान हो जाते हैं। उनके अंतर्धान होते ही सुख छिन जाता है और जब सुख छिन जाता है, तब जीव फिर रोना शुरू कर देता है। ठोकर खाने के बाद जब जीव संभलता है, तब वह जल्दी गिरता नहीं। एक बार ठोकर जरूर खाता है। जिसने कभी ठोकर नहीं खाई, वह जीवन में कभी सावधान नहीं हो पाता। ठोकर खाने के बाद ही जीवन में सावधानी आती है। भागवत में पांच प्राण ही रास पंचाध्यायी है। भगवान का मथुरा पधारना और कंस के उद्धार की कथा का वर्णन किया गया। श्रीमद्भागवत महापुराण में कंस के उद्धार की कथा बताते हुए शुकदेव जी महाराज कहते हैं कि कंस के उद्धार की कथा सुनने से कलि व्याप्त नहीं होता, व्यक्ति कलियुग के दोषों से बच जाता है। कल की कथा में श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।