पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आज आम प्रश्न है कि यदि भगवान् हैं, तब दिखाओ। भगवान् होता तो दिखाई न देता? भगवती होती तो दिखाई न देती, लेकिन हम लोग कहते हैं कि बहुत सी चीजें ऐसी हैं, जो विद्यमान हैं, लेकिन दिखाई नहीं देती। यदि आप कहते हैं कि दुनियां में जो कुछ भी है वह सब दिखाई दे रहा है, तब यह बताइए कि मिश्री में मिठास है या नहीं? आप कहेंगे कि है। तब बताइए मिठास का रंग रूप क्या है? नमक में खारापन है कि नहीं? लेकिन दिखाई नहीं देता। समुद्र में नमक है या नहीं? लेकिन दिखाई नहीं देता। हवा है या नहीं? आंखों से दिखती है कि हवा का क्या रंग- रूप है? पुष्प की गंध देखी है क्या? आपके शरीर में दर्द है, दिखाई देता है? सिर दर्द दिखाई देता है? आपके हृदय में खुशी है, स्नेहा है, कभी दिखाई दिया? जब इतनी सारी चीजें होते हुए भी दिखाई नहीं देती, भगवान् भी होते हुए दिखाई न दे तब इसमें आश्चर्य की क्या बात है? ये चीजें दिखाई नहीं देती, फिर भी आप मान लेते हैं। यदि ईश्वर दिखाई न दे, तब आप नास्तिक हो जाते हैं। फिर वे लोग एक तर्क देते हैं- ठीक है, मिश्री की मिठास दिखाई न दे, पर रसना से अनुभव होती है। पुष्प की गंध का नाक से अनुभव होता है, शब्द का कान से अनुभव होता है। गंध को नाक के अतिरिक्त और किसी इंद्रिय से सूंघ सकते हैं? खट्टे-मीठे को बोद्ध रसना के अतिरिक्त और किसी इंद्रिय से हो सकता है? एक वस्तु के बोद्ध के लिए भगवान् ने एक इंद्रिय बनाई है। रस का बोध रसना से, गंध का बोध नाक से, रूप का बोध नेत्रों से, शब्द का बोध कान से, स्पर्श का बोध त्वचा से और भगवान् का बोध निर्मल बुद्धि से ही होता है। एक-एक वस्तु के बोध के लिए भगवान् ने एक-एक इंद्रिय बनाई है। इसी प्रकार परमात्मा के बोध के लिए भगवान् ने बुद्धि बनाई है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।