पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता की पूर्व भूमिका, कुरुक्षेत्र का वह रणांगण, दोनों ओर सेनाएं आकर खड़ी हो गई हैं। एक तरफ कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी सेना और दूसरी तरफ पांडवों की सात अक्षौहिणी सेना। वैसे तो पांडव भी कौरव ही हैं। जो कुरु के वंश में हुए वे सब कौरव हैं। तो पांडव भी कौरव ही हैं, लेकिन अब भेद करने के लिए दुर्योधन को हम कौरव कहते हैं और युधिष्ठिरादि को पांडव कहते हैं, तो यह एक ही वंश के हैं। सभी कौरव ही हैं क्योंकि कुरु कुलोत्पन्न हैं।
एक तरफ धृतराष्ट्र हैं- धृतराष्ट्र के पुत्र और दूसरी तरफ जो हृतराष्ट्र खड़े हैं, जिनका अधिकार छीन लिया गया है। समाज में जब भी संघर्ष होता है तो धृतराष्ट्रों और हृतराष्ट्रों के बीच में ही होता है। एक वह हैं जो किसी के अधिकार को छीन करके बैठ गये हैं, दूसरे वे हैं जिनका अधिकार उनसे छीन लिया गया है। तो फिर वहां संघर्ष अनिवार्य हो जाता है, युद्ध जब निश्चित हो गया कथा है महाभारत की। हम सबने सुना और पढ़ा है। युद्ध को रोकने का प्रयत्न किया गया। चाहे रामायण का युद्ध हो, चाहे महाभारत का युद्ध हो, संवाद के माध्यम से दोनों युद्धों को रोकने का प्रयत्न किया गया।
श्री राम ने अंगद को भेजा है विष्टि के लिए। वहां भगवान् भेजते हैं अपने एक दूत को, अपने एक भक्त को, अपने एक सेवक को विष्टि के लिए और विष्टि विफल हो गई और युद्ध अनिवार्य हो गया। और महाभारत में भक्त भेजता है भगवान् को विष्टि के लिए। भगवान् के समझाने से भी कई लोग नहीं समझते आज भी। मेरी आपकी छोड़ो स्वयं भगवान् भी आ जायें उन्हें समझाने के लिए तो वे नहीं समझते। मरहम लगाने से यदि घाव मिटता नहीं है तो फिर ऑपरेशन अनिवार्य हो जाता है।
डॉक्टर कभी-कभी उस सड़े हुए अंग को ऑपरेशन करके, काट करके, अलग कर देते हैं। उस काटने में, उस शल्यक्रिया में हो सकता है किसी को हिंसा दिखाई दे, किंतु वह हिंसा भी उस व्यक्ति को जिंदा रखने के लिए है। इसलिए डॉक्टर को कोई हिंसक नहीं कह सकता। उस सड़े हुए भाग को यदि काटकर अलग नहीं कर दिया गया तो उस आदमी का जीवन समाप्त हो सकता है। वह मर जायेगा। उसी प्रकार इस समाज को बचाने के लिए, समाज के कुछ सड़े हुए जो अंग हैं, जो मरहम लगाने से, दवाई से मिटते नहीं तो उस खराबी को दूर करने के लिए कभी-कभी शस्त्रक्रिया आवश्यक हो जाती है। जो शास्त्र से नहीं मानते उन्हें शस्त्र से समझाना जरूरी हो जाता है। इसीलिए सभी देवताओं के हाथ में शास्त्र भी है, शस्त्र भी है।
हमने शास्त्र की भी पूजा की, हमने शस्त्र की भी पूजा की। तो अच्छी बात है, शस्त्र रहित विश्व हो।अणु बम बनाने में जितने अरबों- खरबों खर्च हो रहे हैं। “विश्व की सरकारों” के द्वारा जो वहां खर्च न किया जाय और वह मानवता के विकास के लिए खर्च किया जाय, ये बात तो बड़ी सुंदर है। हम चाहते हैं कि ऐसा हो लेकिन जब शस्त्र का उपयोग अनिवार्य हो जाता है तो अणुबम बनाना पड़ता है। एक देश ने पांच धमाके किये तो दूसरे ने छःकिये।
लेकिन किसी चिंतक ने बहुत ठीक कहा है कि अणुबम का सबसे सही उपयोग यही है कि अणुबम का कभी उपयोग न किया जाय। यही उसका श्रेष्ठ उपयोग है। लेकिन उसके बल के चलते कई जो उपद्रवी हैं वह उस भय के कारण यदि अत्याचार, अनाचार और दुराचार करने से अपने को रोक लेते हैं, डर के मारे, तो वह भी अच्छा ही है।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।
श्री दिव्य घनश्याम धाम,
श्री गोवर्धन धाम कालोनी,
दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग,
गोवर्धन, जिला-मथुरा,
( उत्तर-प्रदेश)
श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)