एस्ट्रोलॉजी। सनातन धर्म में भगवान की पूजा का बहुत महत्व है। यही कारण है कि हर व्यक्ति के घर में मंदिर होता है जिसमें वह भगवान की पूजा करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से घर में बना मंदिर या पूजा स्थल सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है। हम जहां जाते हैं वहां बड़ी से बड़ी समस्या का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। हमें वास्तु नियमों का हमेशा विशेष ध्यान रखना चाहिए। आध्यात्मिक शक्ति और शांति देने वाले इस पूजा स्थल को बनाने से घर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। तो आइए जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर के मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण नियम।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण या उत्तर दिशा में बनाना चाहिए और इस स्थान पर भी मंदिर में देवी का वास होता है। देवता को इस प्रकार रखें कि पूजा करते समय आपका मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर रहे।
- घर के अंदर बनने वाले मंदिर की ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दोगुनी होनी चाहिए और इस मंदिर को दीवार पर इतनी ऊंचाई पर बनाना चाहिए कि पूजा घर में रखी भगवान की मूर्तियां आपके दिल तक रहे। घर के मंदिर में कभी भी बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। जयोतिष शास्त्र के अनुसार पूजा घर में नौ अंगुल तक की मूर्ति शुभ मानी जाती है।
- पूजा घर में कभी भी खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। इसी तरह अगर पूजा घर में कोई भी देवी-देवता का फटा हुआ या रंगहीन फोटो नहीं रखना चाहिए। ऐसी तस्वीर या मूर्ति को किसी पवित्र स्थान पर ले जाकर गाड़ देना चाहिए। पूजा कक्ष में कभी भी मृतक की तस्वीर नहीं रखनी चाहिए।
- घर के मंदिर में देवी-देवताओं की हमेशा हंसती हुई तस्वीर लगानी चाहिए। मंदिर में देवी-देवताओं के उग्र रूपों की तस्वीरें न लगाएं। ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
- घर के मंदिर को हमेशा हल्के और शुभ रंगों से रंगना चाहिए। इसके लिए आप हल्का पीला, नीला या नारंगी रंग चुन सकते हैं। मंदिर को चमकीले रंगों से रंगने से बचना चाहिए और भूलकर भी इसे काले रंग से नहीं रंगना चाहिए।
- ज्योतिष के मुताबिक पूजा घर कभी भी सीढ़ियों के नीचे या शौचालय के बगल में नहीं बनाना चाहिए। इसे वास्तु का गंभीर दोष माना जाता है। इससे उस घर में रहने वाले लोगों को मन और धन से जुड़ी बड़ी-बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।