पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा,अपराधी को दंड देने की सामर्थ्य होते हुए भी उदारता से उसे क्षमा कर देना ही वास्तविक क्षमा है। “क्षमा” पर दो प्रकार से विचार होगा। पहला अपराध करने वाला अबोध है या नासमझ है। जैसे न्यायाधीश का पौत्र उसकी गोद में मल मूत्र त्याग दे तो वह उसे दंड न देगा। कारण अपराधी (बालक) अबोध है, नासमझ है। दूसरे, जो हमें दुःख, कष्ट, दंड मिला है अथवा सामने वाले ने हमारा अपमान किया है, वह हमारे पूर्व कर्मों का ही फल है। वह कर्म अपना फल लेकर निवृत्त हो गया। कर्म का बोझ हमारी सिर पर लदा रहेगा तो हमारा अहित ही होगा। श्रीमन्नारायण क्षीर सागर में शेष शैय्या पर विश्राम कर रहे थे और लक्ष्मी जी पांव दबा रही थी कि अचानक महर्षि भृगु वहां पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु और शंकर में कौन बड़ा और अग्रपूजा का अधिकारी है – वह इसकी जांच और परीक्षण कर रहे थे। वे भगवान शंकर और ब्रह्मा जी के पास हो आये थे। भृगु जी ने आते ही भगवान विष्णु की छाती पर लात मारा और कहा ऋषि आपके घर आई और आप प्रमाण में लेटे लेटे रहे जग का पालक ही मर्यादा पालन भूल गया तो संसारियों से मर्यादा पालन की आशा कौन करेगा? यद्यपि महर्षि के आने की सूचना न थी और भगवान् ने उन्हें निमंत्रण भी नहीं दिया था। स्वयं को निरपराध जानकर भी उन्होंने दोनों हाथ जोड़े, अभिवादन कर आसन पर बिठाया और उनके पांव दबाने लगे। बोले,” आपके दास की छाती कठोर है क्योंकि कोमल चरणों को पत्थर रूपी छाती पर लगने से चोट लगी होगी। लाइये दबा दूँ। ऐसा कहकर भगवान् श्री ऋषि के चरण दवाने लगे। तब तक भृगु जी अपनी गलती समझ चुके थे। आंख में आंसू भरकर, गद्गद होकर भगवान् को छाती से लगाया और कहा, ‘ भगवान विष्णु तीनों त्रिदेव में आपही श्रेष्ठ है। कवि ने कहा है- क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। “क्षमा वीरस्य भूषणम्”- क्षमा वीरों का आभूषण है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)