वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है चीन

देश। चीनी सेना फिर से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फिर से अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में देखा जा रहा है कि एक बार फिर से चीन सुनियोजित तरीके से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है चीन से लगी भारत की हिमालय पर हजारों किलोमीटर लंबी सीमा  पर विवाद अब भी सुलझा नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या चीन भारत के खिलाफ युद्ध की स्थिति को झेलने के लिए तैयार है या वह इसी बात का फायदा उठाने का प्रयास कर रहा है कि भारत युद्ध तक पहुंचेगा ही नहीं इसलिए उस पर जितना दबाव बनाया जाए उतना ही अच्छा है।

गंभीरता की जरूरत?
भारत के लिए युद्ध सही विकल्प नहीं है और ये बात चीन सहित पूरी दुनिया को पता है। ऐसे में चीन को रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए इस पर बहुत सोच समझ कर कदम उठाने की जरूरत है। हांलाकि चीन की इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए भारत को अब इस मुद्दे पर बहुत गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

अवसर की स्थितियां
भूरणनितिक मामले में वैश्विक परिदृश्य एक अवसर है। रूस की भारत से नजदीकिया चीन को रोकने में मददगार साबित हो सकती हैं क्योंकि बड़े संघर्ष की स्थिति में चीन को रूस खुल कर समर्थन नहीं करेगा और वैश्विक मंच पर चीन अकेला पड़ जाएगा जो अभी आर्थिक तौर पर यह सहन नहीं कर सकता है। लेकिन वहीं  दूसरी तरफ अमेरिका का ध्यान यूक्रेन पर है और वह ताइवान पर भी नजरें जमाए हैं ऐसे में चीन भारतीय सीमा पर सक्रियता बढ़ाने के अवसर को देख सकता है।

चीन का मुख्‍य मंसूबा वास्तविक नियंत्रण रेखा को इतना ज्यादा विवादित बनाए रखना है जिससे भारत उसे ही सीमा मान कर शांति कायम करने का प्रयास करे। वहीं शीर्ष अमेरिकी सैन्य अधिकारी भी यह संकेत दे रहे हैं कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सक्रियता बढ़ा सकता है।

अरुणाचल प्रदेश
बीते वर्ष दिसंबर में ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश के त्वांग सेक्टर में घुसपैठ करने का प्रयास किया था जिसे भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने “यथास्थिति का एकतरफा उल्लंघन का प्रयास” करार दिया था। वहीं अमेरिका ने भी हाल ही में संसद में एक प्रस्ताव पारित कर माना कि अरुणाचल प्रदेश भारत का ही एक हिस्सा है। जबकि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में हुए जी20 के एक कार्यक्रम का बहिष्कार किया और प्रदेश के कुछ नाम बदलने का ऐलान किया जिसे भारत ने खारिज कर दिया।

भारत में भी बेचैनी?
वैसे तो भारतीय सेना और राजनीतिज्ञ चीनसीमा विवाद पर टिप्पणी करने से बचते ही रहते हैं, लेकिन हाल ही में बयानों में एक तरह के बेचैनी देखी जा रही है। स्‍वंय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने लद्दाख में हालात नाजुक और खतरनाक बताए हैं। वहीं भारत के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मनोज पांडे ने भी कहा है कि चीन सीमा पर सैन्य गतिविधि बहुत अधिक बढ़ा रहा है। जिसमें एलएसी के पास बुनियादी ढांचों का निर्माण प्रमुख है।

चीन को होगा नुकसान
क्या चीन भारत से सीधी सैन्य टक्कर लेने का जोखिम ले सकता है। इस पर संदेह के पर्याप्त वजह हैं। पहले तो भारत पर हमला कर चीन बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकेगा जबकि उसका सबसे बड़ा मकसद चीन को महाशक्ति के शीर्ष स्थान से हटा कर स्‍वंय को स्थापित करना है।  भारत पर हमला करने से उसे इस मकसद में नुकसान ही होगा। भारत को उलझाने कि लिए उसका पाकिस्तान को पीछे से समर्थन ही काफी है और अमेरिका के लिए वह उत्तर कोरिया को समर्थन देगा। लेकिन भारत अमेरिका से सैन्य सहायता लेकर चीन पर दबाव बढ़ा सकता है। चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत अमेरिका से ज्यादा सैन्य संबंध रखे, खुद भारत भी ऐसा नहीं चाहता,लेकिन चीन की सीमा पर हरकते अमेरिका को इस इलाके में दखल देने के लिए उकसाने का काम करेंगी जो उसी के लिए नुकसानदायी होगा। भारत इस स्थिति का फायदा उठा कर चीन पर दबाव डाल सकता है। भारत को चीन को भी कूटनीतिक तौर पर उलझाने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सक्रियता उसे लाभ पहुंचाने का एक बड़ा अवसर है।

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