धर्म। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से गौदान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष 1 मई को मोहिनी एकादशी है। मोहिनी एकादशी की तिथि 30 अप्रैल को रात 08 बजकर 28 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं इसकी समाप्ति 1 मई दिन सोमवार को रात 10 बजकर 09 मिनट पर होगी। उदया तिथि को देखते हुए 1 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखने और विधि-विधान से जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। मोहिनी एकादशी व्रत की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। तो आइए आज जानते हैं कि इस एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी क्यों पड़ा और क्या है इसकी पौराणिक कथा…
मोहिनी एकादशी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उसमें से अमृत कलश निकला था। देवता और दानव दोनों ही पक्ष अमृत पान करना चाहते थे, जिसकी वजह से अमृत कलश की प्राप्ति को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद छिड़ गया। विवाद की स्थिति इतनी बढ़ गई कि युद्ध की तरफ अग्रसर होने लगी। ऐसे में इस विवाद को सुलझाने और देवताओं में अमृत वितरित करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री अर्थात मोहिनी का रूप धारण किया।
इस सुंदर स्त्री का रूप देखकर असुर मोहित हो उठे। इसके बाद मोहिनी रूप धारण किए हुए विष्णु जी ने देवताओं को एक कतार में और दानवों को एक कतार में बैठ जाने को कहा और देवताओं को अमृतपान करवा दिया। अमृत पीकर सभी देवता अमर हो गए। जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था, उस दिन वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि थी। इस दिन विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया था, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा होती है।