पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, विष्णु- विष्णु का अर्थ व्यापक होता है। जो कण-कण में व्याप्त है उसी का नाम विष्णु है। सर्वं विष्णुमयं जगत। यज्ञ भी व्यापक है। सारी सृष्टि में हर क्षण यज्ञ चल रहा है। यज्ञेन यज्ञमनन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमासन्न।
1- सांस लेते हैं तो नासिका रूपी कुंड में ब्रह्म वायू की आहुति चलती रहती है और ब्रह्म वायु से प्राणित होकर हम जीवित रहते हैं। अगर आहुति बंद हो जाये तो जीवन ही बंद हो जायेगा।
2- उदर में जठर रूपी अग्नि में अन्न की आहुति देते हैं। उसकी आहुति देने का विधान है। आजकल सड़क पर खड़े होकर खा लिया। विधि से करें तो भोजन भी यज्ञ है, वह विधि क्या है? जैसे स्नान करके हम यज्ञ करते हैं, वैसे स्नान करके भोजन करना चाहिए। जैसे यज्ञ में पवित्र पदार्थ की आहुति होती है, यज्ञ में हम क्या आहूति क्या देते हैं? घी,
शाकल्य, मेवा, मिष्ठान , उसको भी धोकर, पवित्र करके यज्ञ में आहुति देते हैं। अपवित्र भोजन कर रहे हो तो तुम्हारा यज्ञ भी अपवित्र हो रहा है। परिणाम भी अच्छा नहीं होगा।
भोजन करने चलो तो शास्त्र पांच आहुति करने का विधान करता है। पांचों में पांच मंत्र बोलो- प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा। भगवान श्रीराम का तो यज्ञ से प्राकट्य हुआ है इसलिए भगवान श्रीराम ने यज्ञ की मर्यादा का पालन किया। विवाह में मिथिला गये तो भोजन इसी विधि से किया।
पंच कवल करि जेवन लागे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।।
3-शतपथ ब्राह्मण के चौदहवें कांड में संतान मंत्र का वर्णन है। संतान प्राप्ति के लिए गर्भाधान का जो विधान है, उस विधान का नाम भी संतान मंत्र यज्ञ है। वह शास्त्र विधि से होने पर यज्ञ है।
4- इस प्रकार से जीवन भर यज्ञ करते हुए मनुष्य के लिए शास्त्र ने कहा- जब शरीर छूट जाये तो उसके शरीर की आहुति कर दो, कहां? तो कहते हैं चिता में । जिसने जीवन भर अग्नि को खिलाया तो आखरी में उसके शरीर को अग्नि में दाह का भाव भी यही है। इसीलिए सनातन धर्म में इसे अंतिम संस्कार कहा गया है।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश)श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।