नई दिल्ली। अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि बिहार में जातीय जनगणना हो रही है या नही। पटना हाईकोर्ट ने 04 मई को अंतरिम फैसले में बिहार सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वह जाति आधारित गणना है। वहीं उसने 03 जुलाई को अगली तारीख देते हुए बिहार में जाति आधारित जनगणना पर अंतरिम रोक लगाई थी तो सरकार ने जल्द तारीख देने की अपील की। वह अपील भी नाकाम होने पर हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में अंतिम फैसले का संकेत मानते हुए बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहीं आज सुप्रीम अदालत में इसकी सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट से दो बार लौटा है यही केस
बापको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के पास दो बार पहले भी ये मामला आ चुका है। ये मामला तीसरी बार यहा पहुंचा है। पहले, दो बार बिहार में जातीय जनगणना को असंवैधानिक करार देने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अपील की थी। दोनों ही बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे हाईकोर्ट का मामला करार दिया। दोनों बार बिहार सरकार को राहत मिली, लेकिन जब पटना हाईकोर्ट ने राज्य की नीतीश कुमार सरकार के निर्णय के खिलाफ अंतरिम फैसला सुनाते हुए जुलाई की तारीख दे दी तो अब तीसरी बार यह मामला नीतीश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है।
हाईकोर्ट में अभी कई मुद्दों पर बातें बाकी
मालुम हो कि राज्य सरकार भले ही अंतरिम फैसले को ही अंतिम संकेत समझते हुए सुप्रीम कोर्ट में इसे रद्द कराने के लिए पहुंच गई है, लेकिन पटना हाईकोर्ट में इस केस से जुड़े वकीलों का दावा है कि अभी यहीं कई मुद्दों पर तर्क-वितर्क बाकी है। अभी सिर्फ इसकी संवैधानिकता, डाटा की असुरक्षा और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना जैसे मुद्दों पर बहस हुई है, जातियों का नाम बदलने, उप-जातियों को जाति के रूप में स्थापित करने की कोशिश, किन्नर को जाति बताने, सिखों की जाति नहीं निर्धारित करने जैसे कई मुद्दों पर हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं की बातें नहीं सुनी गई हैं।