पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीकरमैतीजी इस घोर कलिकाल में उत्पन्न होकर भी सर्वथा निष्कलंक रहीं। यह बात भक्तमाल में किसी के लिये नहीं कही गयी। पूरे जीवन पवित्र रहना, षट विकारों से रहित रहना, यह अन्य युगों में भी कठिन है कलियुग में बहुत ही कठिन है। कई लोग क्रोध के कारण कलंकित हो जाते हैं। कई लोग लोभ, मोह, मद, मत्सर, काम आदि के कारण भी कलंकित हो जाते हैं। लेकिन इस कठिन कलिकाल में
श्रीकरमैतीजी भगवत भजन एवं सत्संग के प्रभाव से पूरे जीवन विकारों से रहित रही। पूरा जीवन पवित्र श्री गंगा जी की धारा के समान रहा। इन्होंने अपने शरीर के पति के प्रति नश्वर प्रेम छोड़कर, आत्मा के पति भगवान श्री कृष्ण चंद्र के श्री चरणों में सच्चा प्रेम किया। अपने तर्कों के द्वारा सोच-विचार कर संसार के सभी बंधनों को तोड़ डाला। निर्मल कुल काँथड्या और उनके पिता श्री परशुराम जी धन्य हैं, जिन्होंने करमैती सरीखी भक्ता पुत्री को जन्म दिया।
सर्वविदित है कि श्री करमैती जी ने घर को छोड़कर श्री वृंदावन धाम में निवास किया। संत जन इनके त्याग, बैराग और भक्ति की बढ़ाई करते हैं। इन्होंने सांसारिक विषयों के भोगों से प्राप्त होने वाले सभी सुखों को वमन की तरह त्याग दिया अर्थात् फिर भूलकर भी उनकी ओर नहीं देखा। उन सुखों को प्राप्त करने की इच्छा नहीं की। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)