Vishwakarma Puja: एकलौता सूर्यमंदिर जिसका पश्चिम दिशा में द्वार, भगवान विश्वचकर्मा ने एक रात में किया था तैयार

Vishwakarma Puja 2023: आज यानी 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा प्राकट्य दिवस हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की विशेष रूप पूजा-आराधना की जाती है। विश्वकर्मा जी को सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी का सातवां पुत्र माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा सृजन के देवता है। माना जाता है कि संपूर्ण सृष्टि पर जीवन के संचालन के लिए जो भी चीजें सृजनात्मक हैं, वह भगवान विश्वकर्मा की देन है।

भगवान विश्‍वकर्मा को दुनिया का पहला शिल्पकार, वास्तुकार कहा जाता है। इस कारण प्रतिवर्ष विश्वकर्मा जयंती के मौके पर औजारों या सामान की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने रातोरात अपने हाथों से एक मंदिर का निर्माण किया। यह मंदिर सदियों से देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प और कलात्मक भव्यता को देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं। आइए जानते हैं भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित मंदिर के अप्रतिम सौंदर्य और यहां स्थापित देव के बारे में,

बिहार के औरंगाबाद में हैं मंदिर

बिहार के औरंगाबाद जिले में प्राचीन और विशाल सूर्य मंदिर है, जिसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से एक रात में किया था। इस मंदिर में भगवान सूर्य विराजमान हैं। औरंगाबाद का यह अद्भूत सूर्य मंदिर कई कारणों से खास है।

अद्भूत है यह सूर्य मंदिर
यह सूर्य मंदिर देश का एकलौता ऐसा मंदिर है, जिसका द्वार पश्चिम दिशा की ओर खुलता है। इसके अलावा देश के सभी सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुख हैं, लेकिन औरंगाबाद का सूर्य मंदिर पश्चिमाभिमुख है। मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति सात रथों पर सवार है। इसमें से उनके तीन रूपों का वर्णन किया गया है। पहला, उदयाचल- प्रात: सूर्य, दूसरा मध्याचल- मध्य सूर्य, और तीसरा अस्ताचल-अस्त सूर्य।

मंदिर करीब सौ फीट ऊंचा है, जहां स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है। बिना सीमेंट अथवा चूना-गारा के मंदिर का निर्माण आयताकार, वर्गाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि रूपों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर हुआ है। मंदिर काले और भूरे रंग के पत्थरों से बना है। औरंगाबाद का सूर्य मंदिर ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर से मेल खाता है। मंदिर के बाहर लगे शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में एक श्लोक लिखा है, जिसके मुताबिक, मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 वर्ष पूर्व त्रेता युग में हुआ था।

 

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