देव दीपावली पर गोबर के दीयों से जगमगाएगी काशी, महिला सशक्तीकरण की बनेगी मिसाल

Dev Deepawali: दीपावली का त्योहार पूरे देश में 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा और ठीक उसके 15 दिन बाद काशी में देव दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा. काशी में देव दीपावली त्योहार का बहुत महत्व है, हर साल गंगा नदी के घाटों को लाखों दीयों से सजाया जाता है, लेकिन इस बार देव दीपावली के मौके पर घाट को मिट्टी के दीयों से नहीं बल्कि गोबर से बने इको-फ्रेंडली दीयों से सजाया जाएगा. खास बात ये है कि ये दीये महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं.

दभोई के उम्मेद केंद्र में महिलाएं गंगा घाटों को देव दीपावली के दिन सजाने के लिए पूरी मेहनत से गोबर के दीये बना रही हैं. ये दीये विभिन्न गैर सरकारी संगठन मिलकर बना रहे हैं.  सोसाइटी फॉर इंडियन डेवलपमेंट, रेवुमंस वेलफेयर फाउंडेशन और वडोदरा के नरनारायण देव चैरिटेबल ट्रस्ट मिलकर इको फ्रेंडली दीये बनाने के साथ-साथ महिलाओं को रोजगार देने का काम भी कर रहे हैं. इन दीयों को दभोई से काशी में गंगाजी के घाट पर भेजा जाएगा और दिवाली के दिन दीपोत्सव में इनका उपयोग किया जाएगा.

तीन लाख दिए बनाने का लक्ष्‍य

संगठन ने स्वदेशी वस्तुओं की खरीद और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए 3 लाख गोबर के दीये बनाने का लक्ष्य रखा है. संगठन से जुड़ी अक्षिता फतेसिंह सोलंकी ने कहा कि गोबर के दीये काशी के घाटों को सुसज्जित करेंगे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वदेशी वस्तुओं की खरीद का आग्रह कर रहे हैं, ऐसे में गोबर के दीये बनाकर हम महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं.

बता दें कि दीये बनाने का काम सिर्फ महिलाएं कर रही हैं.  मशीनों की सहायता से भी दीए बनाने का काम किया जा रहा है.उन्होंने बताया कि अगर दीये गंगा में प्रवाहित होंगे तो भी मां गंगा को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. उन्होंने ज्यादा से ज्यादा इको-फ्रेंडली दीये खरीदने का आग्रह किया है.

क्‍या है मिट्टी के दिए जलाने की परंपरा

दरअसल, सनातन धर्म में देव दीपावली का बहुत महत्व है. माना जाता है कि असुर त्रिपुरासुर के अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान शिव की शरण ली थी और असुर का नाश करने के लिए कहा था. ऐसे में भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया, जिसके बाद देवी-देवताओं ने प्रसन्न होकर काशी को दीयों से जगमगा दिया था. तब से काशी और गंगा घाटों पर देव दीपावली मनाने की प्रथा चलती आई है.

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