Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दुःखी हृदय-बहुत प्रेम पूर्वक मिलने पर भी यदि सामने वाला व्यक्ति हमारी उपेक्षा करे तो हमें बहुत बुरा लगता है. इसी तरह स्वयं के अंगों को क्षीण करके हमें जीवन दान करने के लिए अन्न की भेंट देने वाली धरती माता का हृदय तब दुःखी होता है,जब हम अन्न बिगाड़ते हैं.
धरती माता एक दाने का हजारों दाना करके वापस देती हैं. अन्न, फल, जल सब धरती का हम आपके लिए दिया गया उपहार है. हम उस प्रेमोपहार का अपमान करते हैं. कभी परोसी हुई थाली को उठाकर फेंक देते हैं. कभी थाली में आवश्यकता से अधिक लेकर बाद में झूठा डालते हैं और अन्न को बिगाड़ते हैं. जिस समय इस धरती माँ के अन्य सन्तान अर्थात् जीव भूख प्यास से इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं. तब संग्रहखोरी और नफाखोरी करते हैं. इस हालत में माँ का दिल दुःखी नहीं होगा तो क्या होगा?
हमारी योग्यता तो यह है कि हमें अन्न का एक भी दाना न दिया जाय, किन्तु धरती के अन्नतल में मां बैठी है, अतः हमारे अवगुणों की उपेक्षा करके तथा स्वयं के दुःखों को दबाकर हमें अन्न प्रदान करती है, लेकिन उसकी उमंग समाप्त होती जा रही है, इसलिए अन्न की कमी होती जा रही है.
आज से ही हम इस बात को समझ लें और मां धरती का हृदय फिर अन्न का प्रेमोपहार देने के लिए उमंग-उत्साह से छलकने लगे, इस हेतु हम अन्न का आदर करेंगे, जूठा नहीं डालेंगे,अनैतिक ढ़ंग से संग्रहखोरी, नफाखोरी नहीं करेंगे और दूसरे भाइयों में उमंग पूर्वक अन्न का वितरण करेंगे- यह संकल्प हम सबको करना है.
शिव प्रकृति के पति हैं, इसलिए उसे बस में रख सकते हैं. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).