इन्द्रियों के प्रत्येक दरवाजे पर करें प्रभु को विराजमान: दिव्‍य मोरारी बापू    

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दो पर्वत- बद्रीनारायण की यात्रा पर जाते समय बीच में जय-विजय नामक दो पहाड़ों को पार करने में यात्रियों को कष्ट होता है. किन्तु इन पहाड़ों को पार करने के बाद ही नारायण के दर्शन होते हैं. स्वदेश में मिलने वाली प्रतिष्ठा को जय कहते हैं.

विदेश में मिलने वाली प्रतिष्ठा को विजय कहते हैं. इन दोनों से बच पाना मुश्किल है. काम और धन का त्याग करने वाले भी कीर्ति का त्याग नहीं कर सकते. गृहस्थ के लिए धन या गृहस्थ आश्रम का सुख छोड़ना जितना कठिन है, उससे भी ज्यादा कठिन साधक के लिए मान-प्रतिष्ठा के मोह को छोड़ना है.

घर छोड़कर बन में जाने वाले साधक के पीछे भी मान-प्रतिष्ठा का भूत तो बना ही रहता है.  साधना के लिए संसार छोड़ने वाले साधक भी सिद्धि और प्रसिद्धि के पीछे दौड़ते हैं. फिर तो अनुयायियों की संख्या बढ़ती जाती है और संसार छोड़ने वाले साधक फिर संसार में फैल जाते हैं.  एक को छोड़कर यदि दूसरे में उलझ गये तो फिर क्या प्राप्त करेंगे?

इन्द्रियों के प्रत्येक दरवाजे पर प्रभु को विराजमान करो. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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