वाराणसी। बनारसी लंगड़े आम का स्वाद सात समंदर पार पहुंच गया है। दो साल के अंदर बनारसी लंगड़ा आम ने विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है। नाम सुनकर ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। सुगंध, मिठास और पतला, छिलका इसे बाकी आमों से अलग बनाता है। वहीं अब मांग बढ़ने पर बनारसी लंगड़ा आम की फसल को बढ़ाने की कवायद तेज कर दी गई है। कचहरी स्थित बनारसी लंगड़ा आम के 110 साल पुराने मातृ पेड़ के संरक्षण के साथ और पौध तैयार करने की योजना है। इधर यूरोपीय और खाड़ी देशों में बीते दो साल में चार से पांच टन तक असली बनारसी लंगड़ा आम नाम के ब्रांड से निर्यात करने के बाद इसकी मांग कई देशों में बढ़ गई। एपीडा के महाप्रबंधक डॉ. सीबी सिंह ने बताया कि जिस प्रकार बनारसी आमों की मांग खासकर लंगड़ा की विदेशों में बढ़ी है इसे देख बनारसी लंगड़ा आम के जीन से मॉडर्न तरीके से पौध तैयार करने और आम के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है। पहली बार 2020 में बनारसी लंगड़ा आम को दुबई और लंदन भेजा गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि लगभग दो सौ साल पहले एक संत काशी आए थे। वह अपने साथ दो आम का पौधा भी लाए थे। वह कचहरी स्थित शिवालय में ठहरे। उस मंदिर के पुजारी दिव्यांग थे। संत ने एक आम का पौधा उस पुजारी को दे दिया। संत ने पुजारी को हिदायत देते हुए कहा कि इस आम का केवल भगवान को ही भोग लगेगा। कुछ सालों बाद जब उस आम में फल लगे तो मंदिर के पुजारी ने उसका भोग भगवान को लगाया। फिर प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया तो उसका स्वाद अद्भुत था। उसी पुजारी के नाम पर आम का नाम लंगड़ा पड़ गया।