वाराणसी। कोरोना काल में जिस तरह से ब्लैक फंगस के मरीज मिले हैं, उसे लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं। पहले से डायबिटीज, ब्लड प्रेशर सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों में ब्लैक फंगस के मामले अधिक मिले हैं। अब आईएमएस बीएचयू की एक टीम वैज्ञानिक तरीके से इसके सही कारणों का पता लगाने में जुटी है। शोध का पहला चरण पूरा हो चुका है, अब दूसरे चरण में मरीजों पर शोध किया जाएगा। कोरोना की दूसरी लहर में ब्लैक फंगस के मरीज अधिक मिले। बीएचयू में ही 250 से अधिक मरीजों का इलाज हुआ। कइयों की हालत गंभीर होने की वजह से इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। इसमें मुंह, नाक के साथ ही आंखों में भी ब्लैक फंगस के लक्षण मिले। आईएमएस बीएचयू में ब्लैक फंगस पर शोध कर रहे जीरियाट्रिक मेडिसिन विभाग के प्रो. एसएस च्रक्रवर्ती के मुताबिक शोध में ईएनटी डिपार्टमेंट के डॉ. सुशील कुमार अग्रवाल सहित अन्य लोग भी है। प्रो. चक्रवर्ती ने बताया कि हाल ही में अध्ययन पूरा होने के बाद इसका प्रकाशन अमेरिका के जर्नल्स में भी हुआ है। बताया कि दो तरीके से ब्लैक फंगस पर शोध किया जा रहा है। पहले शोध में पाया गया है कि कोरोना संक्रमण ही ब्लैक फंगस की मुख्य वजह है। कोरोना की वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से ब्लैक फंगस का खतरा अधिक है। दूसरे शोध में यह देखा गया है कि कोरोना संक्रमित मरीज का शुगर नियंत्रित न होना, स्ट्रायड, रेमडेसिविर के प्रयोग की वजह से भी ब्लैक फंगस के चपेट में आए। प्रो. एसएस चक्रवर्ती ने बताया कि अध्ययन में यह भी तथ्य सामने आया है कि पहली लहर में भी ब्लैक फंगस के मरीज मिले थे। अक्तूबर-नवंबर में भी देश में कुछ जगहों पर ब्लैक फंगस के मरीज मिले। इससे यह देखने को मिला कोरोना से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई और ब्लैक फंगस के मामले मिले।