राजस्थान। ईश्वर ने कोई एक संत की भक्ति से प्रभावित होकर कहा, तुम जो चाहो वरदान मांग लो। मैं तुम्हारी भक्ति और तप से प्रसन्न हुआ हूं। संत ने प्रत्युत्तर दिया प्रभु आपकी मुझ पर बड़ी कृपा है। मेरे मन में आपसे वर मांगने की कोई इच्छा ही नहीं है। अब कछु नाथ न चाहिअ मोरे। दीन दयाल अनुग्रह तोरे ।। मेरे मन में कोई इच्छा ही नहीं है। भगवान ने बार-बार कहा मगर संत ने कुछ नहीं मांगा, तब भगवान् बोले चलो तुम नहीं मानते हो तो न सही, मैं तुम्हें वरदान देता हूं। तुम जिसके सिर पर हाथ रखोगे, उसका कल्याण ही कल्याण हो जायेगा। वह मालामाल हो जायेगा। दुखी होंगे वे सुखी हो जायेंगे। इतना कहकर भगवान् जब अंतर्धान होने लगे, तब संत ने भगवान् के पैर पकड़कर कहा- भगवान् मत जाइये। मुझे फंसाने की बात मत करिये। मैंने आपसे कुछ नहीं मांगा था, आप जो कुछ देकर जा रहे हैं फंसाने की बात है। मुक्ति देने वाले हैं आप और बंधन में डालने की बात कर रहे हैं, कृपा करो। पहले तो वरदान मांगा नहीं था, लेकिन आपने तो दे दिया, तब मांगने की आवश्यकता खड़ी हो गई। नहीं तो मैं नहीं मांगना चाहता था। एक और वरदान अब मैं मांगता हूं। जो पहला वरदान आपने दिया है न, वह मुझे नहीं, मेरी छाया को दे दो, ताकि जिसका कल्याण हो उसे पता ही न चले कि मेरे कारण उसका कल्याण हुआ है। मेरे मन में कभी अहंकार न आये, कि मेरे आशीर्वाद से सुखी हुआ। मैंने आशीर्वाद दिया और उसके बाद वह मालामाल हो गया। कल्याण जरूर हो। अनेकानेक कल्याण, लेकिन मेरे कारण किन-किन का कल्याण हुआ यह मुझे पता भी न चले। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)