भगवान राम वन गमन मार्ग के दोनों किनारों के तीर्थों को संवारेगी सरकार

प्रयागराज। वन गमन मार्ग के किनारे के तीर्थों का कायाकल्प होगा। इसके तहत अयोध्या से चित्रकूट तक 102 किमी लंबे राम वन गमन मार्ग से जुड़े आश्रमों, मठों, मंदिरों और तीर्थों को संवारने के साथ ही मूलभूत सुविधाओं से जोड़ा जाएगा। ताकि वन गमन के दौरान प्रभु राम जहां-जहां ठहरे थे, उन तीर्थों का विकास होने के साथ ही वहां पर्यटकों को लुभाया जा सके। इसके लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। पर्यटन विभाग ने राम वन गमन मार्र्ग के जुड़े तीर्थों को संवारने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। अयोध्या की तर्ज पर प्रयाराज में आध्यात्मिक पर्यटन के लिए देश , दुनिया के सनातनधर्मियों को लुभाने के लिए राम वन गमन मार्ग के तीर्थों को चिह्नित किया जा रहा है। जिस रास्ते भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और मां सीता के साथ 14 वर्ष के वनवास की यात्रा पर निकले थे, उसके किनारे के शहरों, कस्बों के तीर्थ स्थलों को संवारा जाएगा। अयोध्या की सीमा से शृंगवेरपुर से होते हुए प्रयागराज के बीच दो दर्जन से अधिक तीर्थ स्थल पर्यटन के लिहाज से विकसित किए जाएंगे। संत तुलसी दास के रामचरित मानस के अलावा अन्य धर्मग्रंथों में वन गमन के दौरान भगवान राम के पड़ावों को चिह्नित किया जा रहा है। वन गमन के दौरान प्रभु श्रीराम शृंगवेरपुर में शृंगी ऋषि के आश्रम में ठहरे थे। मान्यता के अनुसार इसी आश्रम में कभी पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने शृंगी ऋषि के आचार्यत्व में ही पुत्रेष्ठि यज्ञ किया था। वन गमन के पहले पड़ाव रामचौरा के बाद शृंगवेरपुर और कुरई में स्थित मंदिर में भी भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के विश्राम करने का उल्लेख मिलता है। इसके बाद कुरई से आगे प्रभु राम प्रयागराज में भरद्वाज मुनि के आश्रम और फिर संगम पहुंचे थे। ऐसे में प्रयागराज में स्थित भरद्वाज आश्रम के अलावा दुर्वासा आश्रम, वाल्मीकि आश्रम, पराशर आश्रमों को भी धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से संवारा जाएगा। इसके लिए शासन की ओर से प्रस्ताव मांगे गए हैं। राम वन गमन मार्ग के तीर्थों और परिक्रमाओं को संवारने के लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। धार्मिक पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसे तीर्थों को विकसित करने की योजना है। अपराजिता सिंह, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी।

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