राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि संसार में मनुष्य को व्यथित करने वाले शोक, मोह और भय, इन तीनों के बारे में आप ध्यान से चिंतन करेंगे तो यह बात समझ में आयेगी कि शोक भूतकाल से सम्बन्धित है, मोह वर्तमान से सन्बन्धित है और व्यक्ति को जो भय सताता है, वह भविष्य से सन्बन्धित होता है। भूत का शोक, वर्तमान का मोह और भविष्य का भय, मनुष्य को दुःख पहुंचाने में इन तीनों की हिस्सेदारी रहती है। इन तीनों के कारण मनुष्य विषाद में जीता है। उसके कारण जीवन बोझ बन जाता है। भूतकाल में जो घटना घट गई उसका शोक, वर्तमान में जो है उसका मोह और जो अभी हुआ ही नहीं उसका भय।
उन्होंने आगे कहा कि कही मैं मर जाऊंगा तो, कहीं मेरी नौकरी छूट जायेगी तो, कहीं मेरा यह धन चलाया गया तो, कहीं मेरी सत्ता की कुर्सी मेरे से छिन गई तो मेरा क्या होगा, यह भविष्य का भय है। उस शोक के कारण व्यक्ति मुरझाये हुये फूल की भांति हो जाता है। जहां आनंद है, तो समझो जीवन खिला हुआ गुलाब है, लेकिन शोक बदली छायी कि यह फूल मुरझा जायेगा। शोक है, इसलिए आनंद नहीं है, इसलिए उत्साह नहीं है। उत्साह नहीं है, इसलिये जीवन उन्नत नहीं होता, जीवन में व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन में आनंद की आवश्यकता है, किंतु शोक रहेगा। तब तक आनंद संभव नहीं व्यक्ति सुख चाहता है, लेकिन मोह के कारण सुख नहीं विश्वास के अभाव में डर लगता है, भगवान श्रीरामजी में विश्वास रखोगे तो रामजी बेड़ा पार करेंगे।