राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि एक पढ़े-लिखे बाबू नाव द्वारा नदी पार कर रहे थे। उन्होंने नाविक से पूछा- क्या तुम व्याकरण जानते हो, नाविक ने उत्तर दिया, नहीं । बाबू ने कहा कि तुम्हारी चार आने जिंदगी बेकार चली गई। थोड़ी देर बाद बाबू फिर बोले क्या तुम्हें कविता करनी आती है, नाविक ने कहा नहीं। फिर तो तुम्हारी आठ आने जिन्दगी बेकार हो गई। बाबू ने कहा कि अच्छा तो तुम्हें गणित तो आता ही होगा। नाविक बोला- बाबूजी! मुझे गणित भी नहीं आता। बाबू ने कहा कि तब तो तुम्हारी बारह आने जिन्दगी व्यर्थ चली गई। उसी समय संयोग बस नदी में तूफान उठा और नाव डगमगाने लगी, नाविक नदी में कूद गया और तैरते हुए उसने बाबू से पूछा, बाबूजी! तैरना तो आप जानते ही होंगे। बाबू बोले- नहीं। नाविक ने कहा कि फिर तो आपकी जिंदगी इस समय सोलह आने पानी में है। वन्दन-पूजन प्रत्येक देव का करो। पर ध्यान एक ही देव का करो। ध्यान बिना साक्षात्कार नहीं होता। वन्दन से भगवान् भक्त के स्नेह बंधन में बंधते हैं और भक्त के जीवन के सारे बन्धन को छुड़ा देते हैं। वर्णाश्रम की मर्यादा जीव को ईश्वर की ओर ले जाने की पगडण्डी है। वस्तु को जो देखे वह जीव। भाव देखे वह ईश्वर। वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है हृदय- परिवर्तन की। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)