पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री कृष्ण- ‘ कर्मस्वसङ्ग शौचम् । ‘ कर्मासक्ति न होना ही शौच है। कर्म में आसक्ति बहुत बड़ा अशौच है। जिस प्रकार शव को छूने के पश्चात् व्यक्ति अपवित्र हो जाता है और स्नान करके कपड़े बदल कर ही पवित्र होता है। इसी प्रकार कर्म में आसक्ति है, जो मनुष्य को अशुद्ध कर देती है। दूसरी और कर्म करके अलिप्त रहना या कर्तापन का श्रेय न लेकर, मात्र कर्तव्य रूप में कर्म करके भूल जाना शौच है और अशौच से निवृत्ति भी है। सेवा मुक्त होकर भी कुछ लोग अर्थ और काम की ही सोचते हैं और कर भी लेते हैं। ऐसे व्यक्ति कर्म से लिप्त रहते हैं। कर्तव्य बुद्धि से कार्य करना, अनासक्त रहकर कार्य करना शौच है। धर्म शास्त्रों में तन, मन के साथ धन अर्थात् अर्थ की शुद्धि पर भी विशेष बल दिया गया है। सर्वेषामेव शौचानाम् अर्थशौचं विशिष्यते। अर्थात् सब शौचों में अर्थ की पवित्रता अर्थात् नेक कमाई में ही अर्थशौच है। अर्थ की शुद्धि से मन की शुद्धि होगी। शौच के उत्तर में भगवान् श्री कृष्ण ने भागवत में आध्यात्मिक पक्ष प्रस्तुत किया है। व्यवहारिक दृष्टि से शौच का अभिप्राय तन की शुद्धि और मानव बुद्धि की शुद्धि है। समय पाकर भूमि की शुद्धि होती है। स्नान से तन की शुद्धि होती है। पवित्रता का ध्यान रखने से वस्त्रों की शुद्धि होती है। संस्कारों से गर्भ की शुद्धि होती है। तप से इंद्रियों की शुद्धि होती है। यज्ञ से ब्राह्मण की शुद्धि होती है, दान दान से धन की शुद्धि होती है। संतोष से मन की शुद्धि होती है और आत्मज्ञान से आत्मा की शुद्धि होती है। तन पवित्र सेवा किये, धन पवित्र किये दान, मन पवित्र हरि भजन सों होत त्रिविध कल्यान। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)