पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान् व्यास जी के प्रिय शिष्य श्रीसूतजी से शौनकादि ॠषियों ने आग्रह पूर्वक श्रीशिवमहापुराण सुनाने की प्रार्थना की तो सर्वप्रथम श्रीसूतजी बोले – हे ॠषियों ! आप सब लोग धन्य हैं। जो आप में श्रीशिवजी की उत्तम कथा सुनने की प्रीति हुई है। आपके सामने उत्तम शिव भक्ति बढ़ाने वाला तथा शिव को प्रसन्न करने वाला, काल रूप दुर्गुणों का नाश करने वाला, रसायन रूप शास्त्र सुनाता हूं।
इस शास्त्र का वर्णन श्रीशिवजी ने स्वयं अपने श्री मुख से श्रीसनत्कुमारजी से किया। इसलिए इसे श्रीशिवमहापुराण कहा है। इसके श्रवण, पठन और मनन से कलयुगी जीवों का मन शुद्ध होता है तथा शिव में भक्ति दृढ़ होकर शिवपद की प्राप्ति होती है। हे महर्षियों! सर्व प्रकार के दान एवं यज्ञों को करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह फल श्री शिव महापुराण के श्रोता को अनायास ही मिल जाता है। श्री शिव महापुराण में सात संहितायें हैं और कुल चौबीस हजार श्लोक हैं। संहिता इस प्रकार हैं- विदेश्वर संहिता , रूद्र संहिता, शतरूद्र संहिता,
कोटिरूद्र संहिता, उमा संहिता एवं कैलाश संहिता, सातवीं वायु संहिता वाला यह श्रीशिवपुराण महान तथा दिव्य है। सर्वोपरि ब्रह्म तुल्य है तथा शुभगति देने वाला है। आत्मवेता पुरुष को इस पुराण का सदा सेवन, मनन करना चाहिए।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर ,जिला-अजमेर, (राजस्थान)